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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ उ०९ ० । समयक्षेत्रनीरूपणम् १००३ द्वौ च समुद्रौ एतत् खलु एतावत् समयक्षेत्रमिति पोच्यते तत्रायं जंबूद्वीपो द्वीपः सर्वद्वीपसमुद्राणां सर्वाभ्यन्तरे एवं जीवाभिगमवक्तव्यता ज्ञातव्या यावदभ्यन्तरं पुष्करार्द्धम् ज्योतिषिकविहीनम् ॥ मू-१॥ ___टीका-'किमिदं भंते ! समयक्खेत्तेत्ति पवुच्चइ ' किमिदं भदन्त ! समयक्षेत्रमिति प्रोच्यते ? हे भगवन् ! कस्य क्षेत्रस्य समयक्षेत्रमिति नाम भवतीति गौतमस्य प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'अमयक्षेत्र कौनसा क्षेत्र कहलाता है ? । (गोयमा ! ) हे गौतम ! ( अडाइज्जा दीवा दो य समुद्दा एसणं एवइए समयखेत्तेत्ति पवुच्चह ) अढाई द्वीप और दो समुद्र इसे समयक्षेत्र कहा गया है । ( तत्थ णं अयं जंबूदीवे दीवे, सव्वदीवसमुदाण सव्वभंतरे एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा जाव अभितरं पुक्खरद्धं जोइसविहूण) इसमें जो जंबुद्धीप नामका द्वीप है वह समस्त द्वीप और समुद्रों के ठीक बीच में है। इस तरह यहां समस्त कथन जीवाभिगममूत्र के कथन की तरह जानना चाहिये । वहां का यह कथन यहां कहां तक लेना चाहिये ? तो इसके लिये कहा गया है कि आभ्यन्तर पुष्करार्धतक का लेना चाहिये उसमें भी ज्योतिषिक संबंधी कथन छोड देना चाहिये उसको यहां नहीं लेना चाहिये। टीकार्थ-(किमिदं भंते ! समयखेत्तेत्ति पवुच्चइ ) हे भदन्त ! (समयक्षेत्र ) यह किसको कहा गया है ? अर्थात् समयक्षेत्र यह किस क्षेत्र का नाम है ऐसा यह प्रश्न गौतम का है, इसका उत्तर देते हुए क्षेत्रने समयक्षेत्र डे छ! (गोयमा!) गौतम ! (अड्डइज्जादीवा दो य समुहा एस ण एवइए समयखेत्ते त्ति पवुच्चइ) मढी दी५ मने में समुद्रीने समयक्षेत्र छ. (तत्थण' अय' जबदीवे, दीवे सव्वदीवसमुदाण सम्बब्भतरे एवं जीव भिगमवत्तब्वया नेयव्वा जाव अभितरपुक्खरद्धजोइस विहूणं) तेमा - દ્વીપ નામને દ્વીપ છે તે સમસ્ત દ્વીપ અને સમુદ્રોની બરાબર વચ્ચે વચ્ચ છે. આ પ્રમાણે સમસ્ત કથન જીવભિગમ સૂત્રના કથન પ્રમાણેજ અહીં ગ્રહણ કરવાનું છે કયાં સુધી તે કથન ગ્રહણ કરવું ! તે સૂત્રકાર કહે છે કે * અભ્યન્તર પુષ્કરાઈ પર્યન્ત તે કથન ગ્રહણ કરવું જોઈએ. પરંતુ તેમાં જ્યોતિષિકના વિષયમાં જે કથન આવે છે તે છેડી દેવું જોઈએ-તે સિવાયનું સમસ્ત કથન ગ્રહણ કરવું જોઈએ. टी-गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छ-(किमिद भते ! समयखेत्ते ति पवुच्चइ ) महन्त ! या क्षेत्रने समयक्षेत्र ४ छ ! सटी है या क्षेत्रनु નામ સમયક્ષેત્ર છે ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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