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प्रमेन्द्रका टीका श०२३०८ ०१ अमरेन्द्रस्य सुधर्मासभादिनिरूपणम् ९९५ सामाणिय साहस्सीणं चउसट्ठी भद्दासन साहस्सीओ पन्नत्ताओ एवं पुरत्थिमेणं पंचण्डं अग्गमहिसणं सपरिवाराणं पंच भद्दासणाई सपरिवाराई - दाहिणपुरस्थिमेणं अभितरियाए परिसाए चउव्वीसाए देवसाहस्सीणं चउवीसं भद्दासणसाहस्सीओ एवं दाहिणेणं मज्झिमाए परिसाए अट्ठावीसं भद्दासण साहस्सीओ - दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरए परिसाए बत्तीसं भद्दासणसाहसीओ पच्चत्थिमेणं सत्तण्हं अणियाइवईणं चमरस्स चउसट्टीणं सामाणिय साहस्सीणं चउसट्ठी भद्दासनसाहस्सीओंपन्नताओं, एवं पुरत्थिमेणं) इत्यादि, उस सिंहासन के पश्चिम और उत्तर के कोने में अर्थात् वायव्यकोण में, उत्तर में एवं उत्तरपौरस्त्य मेंईशान कोण में चमर के चौसठ ६४ हजार सामानिक देवों के चोसठ ६४ हजार भद्रासन हैं । इसी तरह पूर्वदिशा में (पंचन्हं अग्गमहिसीर्ण सपरिवाराणं पंच भासणाई सपरिवाराई ) परिवारसहित पांच पट्टदेवि यों के परिवारसहित पांच भद्रासन हैं (दाहिणपुरस्थिमेणं अभितरिया परिसाए चवीसाए देवसाहस्सीणं चउवीसं भद्दासणसाहरुसीओ) दक्षिण और पूर्व के कोने में अग्निकोण में आभ्यन्तरिक परिषद् के चौवीसहजार देवों के चौबीसहजार भद्रासन हैं । ( एवं दाहिणेणं मज्झिमाए परिसाए अट्ठावीसं भद्दासणसाहस्सीओ) इसी प्रकार से दक्षिणदिशामें मध्यमपरिषद के अट्ठाईस २८ हजार भद्रासन हैं । (दाहिण पच्चत्थिमेण बाहिराए परिसाए बत्तीसं भद्दासणसाहस्सीओ दक्षिण और पश्चिम के कोने में अर्थात् नैऋतकोण में बाहिरी परिषद के बत्तीस ३२ हजार भद्रासन हैं। (पच्चत्थिमेणं, सत्ताहं अणियाहिवईां
( तस्स णं णं सीहा सणस्स अवरुत्तरेण उत्तरपुरत्थिमे ण' एत्थण चमरस्ख चट्ठी भद्दासनसाहसीओ पन्नत्ताओ, एवं पुरत्थि मे ण ) छत्याहि ते सिंहाસનના વાયવ્ય કાણુમાં, ઉત્તરમાં અને ઇશાનકાણુમાં ચમરના ચાસઠ હજાર समानि हेवानां यासह उन्नर लद्रासन छे, मेन प्रभाणु पूर्वद्विशामां ( पंचण्ड' अगमहिसो सपरिवारणं पंच भद्दासणाई सपरिवाराई ) परिवार सहित पांय भुभ्य हेवीयानां परिवार सहित पांच लद्रासन छे. ( दाहिणपुरस्थि मेण अभितरियाए परिसाए चउव्वीसाए देवसाहस्सीण' चउवीस भद्दा सणसाहस्त्रीओ ) અગ્નિકાણમાં અભ્યન્તરિક પરિષદના ચાવીસહજાર દેવાનાં ચાવીસ હજાર ભદ્રાસન छे. ( एवं दाहिणेण मज्झिमाए परिसाए अट्ठावीस भासण साहस्सीओ ) ०४ પ્રમાણે દક્ષિણ દિશામાં મધ્યમા પરિષદનાં ૨૮ અઠચાવીસ હજાર ભદ્રાસન છે. (दाहिणपञ्चत्थमेण बाहिराए परिखाए बत्तीस महासण साहसीओ) नैऋत्य अशुभां माह्य परिषहना मत्रीस इन्तर लद्वासन छे. ( पचचत्थिमेण सत्तरह अणिया
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
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