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प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ उ०८ सू०१ चमरेन्द्रस्य सुधासभादिनिरूपणम् ९९३ " मणिकणगरयणभत्तिचित्ते" मणिकनकरत्नभक्तिचित्रः मणिकनकरत्नानां भक्तिभिर्विच्छित्तिभिः 'वेलबुटा' इति भाषापसिद्धाभिः चित्रितः अतिशयितविल. क्षण इति मणिकनकरत्नभक्तिचित्र इत्यादि प्रासादवर्णकः । ' उल्लोयभूमिवपणओ' उल्लोचभूमिवर्णकः प्रासादोपरिभागस्य वर्णक इति, स चैवम्-" तस्स णं पासायडिंसगरस इमे यारवे उल्लोए पनत्ते" तस्य खलु प्रासादावतंसकस्यायमेतद्रूपः उल्लोचः । उपरितनभागः' प्रज्ञप्तः । ईहामिगउसभतुरगनर मगरविहगविलाड किंनर रुरुसरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्तिचिरो' ईहामृग ऋषभतुरगनरमकरविहगविलाड-किन्नररुरु-सरभचमर-कुञ्जरवनवलय -पद्मलता भक्तिचित्रः 'जाव सब्बतपणिज्जमए अच्छे जाव पहिरवे ' यावत् सर्वतपनीयमयोऽच्छो यावत् प्रतिरूपः, इह यावत्पदेन श्लक्ष्णः ममृणः घृष्टः मृष्टः नीरजस्कर (मणिकणगरयणभत्तिचित्ते) मणियों के सुवर्ण के और रत्नों के बने दुए बेलबूटों से यह चित्रित हो रहा है । इत्यादि । ( उल्लोय भूमिवण्ण
ओ) इस प्रासाद के ऊपरकी भूमि का वर्णन समझ लेना चाहिये-जो इस प्रकार से है- (तस्स णं पासायवडिंसगस्स इमेयारूवे उल्लोए पण्णत्ते) (उल्लोच) शब्द का अर्थ-प्रासाद के ऊपर का जो भाग है वह है। यह प्रासाद के ऊपर का भाग ( ईहामिग-उसभ-तुरग-नर-मगर-विहगविलाड-किंनर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचिसे) इन चीजों के बेलबूटांसे युक्त है-जैसे-ईहामृग-मृगविशेष या वृक, ऋषभ -बैल, तुरग-घोड़ा, नर-मनुष्य, मकर-मगर, विहर-पक्षी, विलाडबिल्ली, किन्नर, रुरु-मृग, सरभ-अष्टापद, चमर, हाथी, वनलता और पद्मलता। (जाव सव्वतपणिज्जमए) यावत् यह पूरा प्रासाद के ऊपर का भाग सुवर्ण से ही बना है-ऐसा ज्ञात होता हैं (अच्छे) यह सर्व कणगरयणभत्तिचित्ते ) तेभा भणी, सुवर्ष भने २त्नाना समूहा मावे मेai छे. तेथी ते घ । मनोड२ साणे छे. ( उल्लोय भूमिवण्णओ) वे ते प्रासाहनी S५२॥ भूभिलागनुं वन ४२वामां आवे छे-(तस्स ण' पासाया वडि'सगस्स इमेयारवे उल्लोए पण्णत्ते ) प्रासाहना ५२ना मागन ( उल्लोच) ४३ . ते પ્રાસાનો ઉપરીભાગ નીચે દર્શાવ્યા પ્રમાણેની ચીજોના વેલબુટ્ટાથી યુક્ત છે(ईहामिग, उसभ, तुरग, नर मगर, विहग, विलाड, किंनर, रुरु, सरभ, चमर, कुजर, रणलय, पउमल, भत्तिचिते ) ईहामृग-पान२ सय १३, ऋषभ-मह, तुरग-घा, नर-मास, मकर-भार, विहग-पक्षी, विलाउ-मीबाडी, न्निर, भृा, सरभ-मटा५६, सम२, थी, वनसता मने पसता. (जाव सव्व तप णिज्जमए) ते भलने ५२ने। माम मा सुन मन्या डाय मेनु
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨