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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १ उ०५ सू०२ (२४)दण्डकेषु स्थितिस्थाननिरूपणम् ७५५ स्थितिर्दशवर्षसहस्रागि, उत्कृष्टा तु नवतिवर्षसहस्राणि। एतदेव दर्शयति-तंजहा' इत्यादि । 'तं जहा' तद्यथा-'जहणिया ठिई' जघन्या स्थितिर्दशवर्षसहस्रादिका । इत्येकं स्थितिस्थानं भवति १। एत्स्थानं प्रतिनरकं विभिन्नरूपमेव भवति ।' समयाहिया जहनिया ठिई' समयाधिका जघन्या स्थितिः, एतदेव केन समयेन युतं सत् द्वितीयं स्थितिस्थानं भवति। एवं यावदसंख्येयसमयाधिका सा स्थितिरित्येव दर्शयति-'दुसमयाहिया' इत्यादि 'दुसमयाहिया जहनिया ठिई' द्विसमयाधिका जघन्या स्थितिः, 'जाव असंखेज्जसमयाहिया जहणिया ठिई' यावदसंख्येयसमयाधिका जघन्या स्थितिः। सर्वान्तिमस्थितिस्थानं दर्शयितुमाह-'तप्पाउ०" इत्यादि, “तप्पाउग्गुकोसिया ठिई" तत्मायोग्योकर्षिका स्थितिः उत्कृष्टाऽसौस्थितिरनेकपकारिका, इत्यतो विशेषणद्वारेण कथयति-तस्य विवक्षितनरकादशहजार वर्षको है, और उत्कृष्ट स्थिति नव्वे९० हजार वर्षकी है। इसी बात को दिखाते हैं 'तं जहा' इत्यादि । वह इस प्रकार हैं (जहणिया हिई) जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष आदि की है। यह प्रथम स्थितिस्थान है। यह स्थितिस्थान हरेक नरक में भिन्न है। (समयाहिया जहनिया ठिई) इस जघन्य अर्थात् ओछी में ओछी स्थिति में एक समय जब बढ जाता है तव यह द्वितीय स्थितीस्थान हो जाता है २। इस तरह होते २ जब असंख्यात समय तक यह जघन्य आयु बढती है, तब वह असंख्यात समयाधिक जघन्यायु कही जाती है । यही यात "दुसमयाहिया" इत्यादि पदों द्वारा प्रकट करने में आई है कि "दुसमयाहिया जहानिया ठिई जाव असंखेज्ज समयाहिया जहपिणया ठिई" सब से अन्तिम स्थितिस्थान को कहने के लिये “तप्पाउग्गुकोसिया ठिई " यह कहा गया है कि यह उत्कृष्टस्थिति अनेक प्रकार की है इस. જઘન્ય સ્થિતિ દસહજાર વર્ષની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ નેવું હજાર વર્ષની છે. એ वात २॥ सूत्र भारत वि छ-" तंजहा” याहि. (जहणिया ठिई) “જઘન્ય સ્થિતિ દસહજાર વર્ષ આદિની છે.” આ પ્રથમ સ્થિતિનું સ્થાન થયું? ते स्थितिस्थान ४२४ न२४i Ji Ki छ. ( समयाहिया जहन्निया ठिई ) આ જઘન્ય એટલે ઓછામાં ઓછી સ્થિતિમાં જ્યારે એક સમય વધી જાય છે ત્યારે બીજું સ્થિતિ સ્થાન બની જાય છે, આ પ્રમાણે એક એક સમય વધતાં વધતાં જ્યારે અસંખ્યાતા સમય સુધી આ જઘન્ય આયુષ્ય વધતું જાય છે ત્યારે તેને અસંખ્યાત સમયાધિક જઘન્યાયુ કહેવાય છે. એજ वात “ दुसमयाहिया" त्यादि पह! 43 २॥ रीते ४८ ४२वाम मावी . " दुसमयाहिया जहन्निया ठिई जाव असंखेज्जसमाहिया जहण्णिया ठिई" वे सौथी छदा स्थितिस्थानने मतावाने माटे सूत्र४२ ४ छ । “तप्पाउग्गुकोसिया ठिई " " 241 पृष्ट स्थिति मने प्रारनी छ.” तेथी तेने “तत्प्रायोग्य" શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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