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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.१ उ. ५सू०२ (२४ दण्डकेषु स्थितिस्थाननिरूपणम्' ७५३ वस्तूनि अस्मिन्नुद्देशके विचारणीयानि । इति गाथार्थः । अथ प्रथमतो रत्नप्रभापृथिव्यां स्थितिस्थानानि निरूपयन्नाह-'इमीसे णं भंते' इत्यादि । 'इमीसे णं भंते' एतस्यां खलु भदन्त ! 'रयणप्पभाए पुढ़वीए' रत्नप्रभायां पृथिव्यां 'तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु' त्रिंशति निरयावासशतसहस्रेषु-त्रिंशल्लक्षनरकावासेषु “एगमेगंसि निरयावासंसि" एकैकस्मिन् निरयावासे प्रत्येकनरकावासे ‘नेरइयाणं' नैरयिकाणाम् 'केवइया' कियन्ति 'ठिइहाणा' स्थितिस्थानानि, आयुषो विभागाः 'पन्नत्ता' प्रज्ञप्तानि । भगवानाह-' गोयमा' इत्यादि। · गोयमा' हे गौतम ! ' असंखेज्जा ठिइट्ठाणा पन्नत्ता' असंख्येयानि स्थितिस्थानानि प्रज्ञप्तानि स्थान २, शरीर ३, संहनन४, संस्थान५, लेश्या ६, दृष्टि ७, ज्ञान ८, योग ९ और उपयोग १० ये स्थितिस्थान आदि १० वस्तुएँ इस उद्देशक में विचारणीय हैं। यह गाथा का अर्थ है। अब सूत्रकार पहले रत्नप्रभापृथिवी में स्थितिस्थानों का निरूपण करते हुए कहते हैं-(इमीसे णं भंते) हे भदन्त ! इस (रयणप्पभाए पुढवीए) रत्नप्रभा पृथिवी में (तीसाए निरियावाससयसहस्सेसु) तीस लाख नरकावासोंमें (एगमेगंसि निरयावासंसि) एकएक नरकावासमें अर्थात् प्रत्येक नरकावासमें ( नेरह याणं) नारक जीवों के (केवइया ठिइहाणा पण्णत्ता) कितने स्थितिस्थान कहे गये हैं ? स्थितिस्थान का तात्पर्य आयु के विभागों से है। अर्थात् एक एक निरियावास में रहनेवाले नैरयिक जीवों को कितनी आयु कही गई है। इस प्रकार से यह प्रश्न है । प्रभु इसका उत्तर-(गोयमा! असंखेजा ठिइट्ठाणा पन्नत्ता ) इस सूत्र द्वारा देते हुए कहते हैं कि हे गौतम ! तीस लाख नरकावासों में से एक एक नरकावास में रहनेवाले नारक जीवों के स्थितिस्थान असंख्यात कहे गये हैं । इस का खुलासा अर्थ इस सस्थान, (६) वेश्या, (७) दृष्ट, (८) ज्ञान, (८) यो, भने (१०) रुपया એ દસ વસ્તુઓને આ ઉદ્દેશકમાં વિચાર કરવામાં આવ્યા છે. ઉપર મુજબ ગાથાનો અર્થ છે. હવે સૂત્રકાર સૌ પહેલાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં સ્થિતિસ્થાનોનું नि३५५५ ४२ छ-( इमीसे णं भंते ! ) 3 पून्य ! २. (रयणप्पभाए पुढवीए) २त्नमा पृथ्वीमा (तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु) पावसा त्रीस खास न२४ावासोमानी ( एगमेगंसि निरयावासंसि) प्रत्ये: न२४वासभा (नेरइयाणं केवइया ठिइट्टाणा पण्णत्ता) ना२४ वानी खi स्थितिस्थान ४i छ ? આયના વિભાગેને “સ્થિતિસ્થાન” કહેલ છે. એટલે કે પ્રત્યેક નારકાવાસમાં २नार ना२४ वानुं हुं हुं मायुष्य ४थु छ ? उत्तर-(गोयमा ! असंखेज्जा ठिइटाणा पन्नत्ता) गौतम ! तीससास न२४वासोमाथी समे નારકાવાસમાં રહેતા નારક જીનાં અસંખ્યાત સ્થિતિસ્થાન કહ્યાં છે. તેનું भ० ९५
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧