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________________ - ७०८ भगवतीसूत्रे एवं स्कन्धेनापि · तिणि आलावगा' त्रय आलापका भूतवर्तमानभविष्यत्कालविषयकाः भणितव्याः। स्थूलसूक्ष्मपुद्गलविषयकमालापत्रयं दर्शयित्वाऽतिदेशेनालापत्रयं जीवेपि योजयन्नाह-"एवं जीवेणवि' इत्यादि "एवं जीवेणवि तिण्णि आलावगा भाणियबा" एवं जीवेनापि त्रय आलापका भणितव्याः, एवम् पुद्गलदिखलाकर अब सूत्रकार स्कन्ध में भी त्रिकालस्थायिता प्रकट करने के निमित्त कहते हैं कि-( एवं खंघेणं वि तिणि आलावगा ) इसी प्रकार से स्कन्ध के साथ भी भूत भविष्यत् और वर्तमानकाल संबंधी तीन आलापक कहना चाहिये। अर्थात् पुद्गलस्कंध भूतकाल में था वर्तमानकाल में है और भविष्यत्काल में रहेगा। इस विषयमें प्रश्न और उत्तर पुद्गलपरमाणु सूत्र में कहे गये अनुसार ही जानना चाहिये। वहां सूत्रपाठ " एस णं भंते ! पोग्गलखंधे अतीतं अणंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया" ऐसा बोलना चाहिये-और उत्तर में “हंता गोयमा ! एस णं पोग्गलखंधे अतीतं अणंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिय" ऐसा सूत्रपाठ कहना चाहिये। इसी तरह से वर्तमान और भविष्तत्काल संबंधी प्रश्नसूत्र और उत्तरसूत्र जानना चाहिये । इस तरह सूक्ष्म और स्थूल पुद्गल संबंधी तीन तीन आलापकों को दिखाकर अब सूत्रकार जीवके साथ तीन आलापकों के कथन के निमित्त कहते हैं कि (एवं जीवेणे वि तिणि आलावगा भाणियवा) जिस प्रकार से परमाणुरूप सूक्ष्म पद्गल के साथ त्रिस्थायिपा विवाना माशयथी ४ छ । ( एवं खंघेणं वि तिण्णि आलावगा) मेरी प्रभारी २४न्धनी साथे ५५ भूत, वतमान अने भविष्य साधा ત્રણ આલાપક કહેવા જોઈએ, એટલે કે પુદ્ગલસ્કન્ય ભૂતકાળમાં હતું, વર્તમાન કાળમાં છે અને ભવિષ્યકાળમાં રહેશે. આ વિષયમાં પુગલપરમાણુ સૂત્રમાં કહેલાં પ્રશ્નો અને ઉત્તરનું કથન જાણવું જોઈએ. ત્યાં આ પ્રમાણે સૂત્રપાઠ થવો જોઈએ— "एस णं भंते ! पोग्गलखंधे अतीतं अणंतं सासयं समयं भुवीति वत्तव्वं सिया" આ પ્રમાણે પ્રશ્નસૂત્ર હોવું જોઈએ. અને તેને આ પ્રમાણે ઉત્તર આપો नसे. “हंता गोयमा ! एसणं पोग्गलखंधे अतीतं अणतं सासयं समय भुवीति वत्तव्वं सिया" मे प्रमाणे वतभाना समधी मने भूत समाधी પ્રશ્નસૂત્ર અને ઉત્તરસૂત્ર સમજી લેવા. આ રીતે સૂફમ પરમાણુ યુગલ અને સ્થૂળ (સ્કંધ) પુદ્ગલ સંબંધી ત્રણ આલાપકોનું કથન કરીને હવે સૂત્રકાર જીવની साथै ऋण मासापानुं ४थन ४२वाना माशयथी ४ छ-( एवं जीवेणं वि तिष्णि आलावगा भाणियव्वा ) ची रीते ५२मा ३५ सूक्ष्म पुगवानी साथै શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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