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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटोका श.१ उ0 ४ सू० २ उपस्थानापक्रमणस्वरूपम् ६७७ तयोपतिष्ठेत् तदा 'किं बालवीरियत्ताए उवढाएज्जा' किं बालवीर्यतयोपतिष्ठेत् , बालो नाम-मिथ्यादृष्टिः सम्यगर्थानवबोधात् सद्बोधकार्यरूपविरत्यभावाच्च, यस्य जीवस्य सम्यगर्थावबोधो न भवेत् स बालः, एवं यस्य सद्बोधकार्यरूपविरतिर्न भवेत् स बालो मिथ्यादृष्टिरिति, एतादृशमिथ्यादृष्टेर्वालस्य या वीर्यता परिणामविशेषः सा बालवीर्यता तया बालवीर्यतयोपतिष्ठेत् किम् , अथवा-पंडिय वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा" पण्डितवीर्यतयोपतिष्ठेन् ,पण्डितः सकलसावद्यकर्मवर्जकः, एतद्वयतिरिक्तस्य परमार्थतया अपण्डितत्वात् , सावद्यकर्मरहित एव जीवः पण्डितो हैं कि "जइ वीरियत्ताए उवट्ठावेजा, किं बालविरियत्ताए उवट्ठावेजा, पंडियवीरियत्ताए उवट्ठावेजा, बालपंडियवीरियत्ताए उवट्ठावेजा?) यदि जीव वीर्य के योग से उपस्थान करता है तो क्या वह बालवीय के योग से उपस्थान करता है या पंडितवीर्य के योग से उपस्थान करता है या बालपंडित वीर्य के योग से उपस्थान करता है ? जिस जीव को तत्त्वका सम्परूप से अर्थ बोध नहीं होता है ऐसा वह बाल-मिथ्यादृष्टि जीव कहलाता है। इसके सबोध का कार्यरूप जो विरति है उसका अभाव रहा करता है । तात्पर्य यह कि वही बालजीव है जो सम्यकू अर्थबोध से रहित है और सद्बोध के कार्यरूप विरति से रहित है। इसका दूसरा नाम मिथ्यादृष्टि है। ऐसे मिथ्यादृष्टि रूप बाल की जो वीर्यता-परिणाम विशेष है वह बालवीर्यता है। ऐसी बाल वीर्यता से जीव क्या उपस्थान करता है ? अथवा पंडितवीर्यता से उपस्थान करता है ? सकल सावद्यकर्मों का जो त्यागी होता है वह पण्डित है। इससे भिन्न जीव वास्तविक किं बालवीरियत्ताए उबढाएज्जा, पंडियवीरियत्ताए उवढाएज्जा, बालपंडियवीरियत्ताए उवद्वाएज्जा ?" व वीर्यना योगथी ५२थान ४२ छ तो शु. ते मा. વીર્યના યોગથી ઉપસ્થાન કરે છે, કે પંડિતવીર્યના વેગથી ઉપસ્થાન કરે છે, કે બાલપંડિતવીર્યના વેગથી ઉપસ્થાન કરે છે? જે જીવને સમ્યક્ પ્રકારે અર્થને બોધ થતો નથી એવા જીવને બાલ (મિથ્યાષ્ટિ) જીવ કહે છે. સધના કાર્યરૂપ જે વિરતિ છે તેને બાલજીવમાં અભાવ રહે છે. તાત્પર્ય એ છે કે સમ્યક્ અર્થ બધથી રહિત અને સાધના કાર્યરૂપ વિરતિથી રહિત જીવને જ બાલજીવ કહે છે. તેનું બીજું નામ મિથ્યાષ્ટિ છે. એવા મિથ્યાષ્ટિ બાલજીવની જે વીર્યતા છે તેને બાલવીર્યતા કહે છે. એવી બાલવીર્યતાથી શું જીવ ઉપસ્થાન કરે છે ? અથવા પંડિતવીર્યતાથી ઉપસ્થાન કરે છે? સર્વ સાવદ્ય (પાપકારી) કર્મોને ત્યાગીને સિદ્ધાંતિક પરિભાષામાં પંડિત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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