SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२४ भगवतीसूत्रे मन इति वा, वच इति वा वयं कांक्षामोहनीयं कर्म वेदयामः, वेदयन्ति पुनस्ते। तद् नूनं भदन्त ! तदेव सत्यम् , निःशङ्कम् यद् जिनैः भवेदितम् , शेषं तदेव यावत् पुरुषकारपराक्रम इति वा, एवं यावत् चतुरिन्द्रियाणाम् , पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका यावत् वैमानिका यथोधिका जीवाः ॥सू०१०॥ (तेसिणं जीवाणं णो एवं तकाइ वा, सण्णाइ वा, पण्णाइ वा, मणेइ वा, वहत्ति वा ) उन जीवों के ऐसा तर्क नहीं है, एसी संज्ञा, ऐसी प्रज्ञा मन अथवा वचन नहीं है (अम्हे कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएमो) कि जिससे वे पंचेन्द्रिय जीवों की तरह यह जान सके कि हम कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन कर रहे हैं। (वेएंति पुण ते ) परन्तु वे उसे वेदते जरूर हैं। (से नूर्ण भंते ! तमेव सच्च नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं) हे भदन्त ! क्या वही सत्य और निःशंक है जो जिनों ने कहा है। (सेस तं चेव जाव पुरिसकारपरिकमेह वा, एवं जाव चउरिंदियाणं, पंचिंदियतिरि क्खजोणिया जाव वेमाणिया जहा ओहिया जीवा) बाकीका समस्त कथन पूर्वोक्त रूपसे ही-यावत् पुरुषकारपराकम है' इस पाठ तक जानना चाहिये । इसी तरह यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक के जानना चाहिये। पंचेन्द्रिय तिर्यच योनिकों को यावत् वेमानिक देवोंको सामान्य जीवोंकी तरह जानना चाहिये। सण्णाइ वा, ५ण्णाइ वा, मणोइ वा, वईत्त वा) ते ७वामा मेवो त नथी, એવી સંજ્ઞા નથી, એવી પ્રજ્ઞા નથી, એવું મન નથી, અને વચન પણ નથી. ( अम्हे कंख मोहणिज्ज कम्मं वेएमो) थी ५ थेन्द्रिय वानी म तेस। सेम tell श स क्षाभाडनीय भनु वेहन री छीमे. ( वेएंति पुण ते) छतi ते तेनु वेहन तो अवश्य ४२ ४ छ. ( से नूणं भंते ! तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ?) उ पून्य शु मे०४ सत्य भने નિઃશંક છે કે જે જિનેન્દ્રોએ કહ્યું છે ? હા, ગૌતમ! જે જિનેશ્વરેએ કહ્યું છે ते सत्य मने नि:शछ. ( सेसं तं चेव जाव पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा, एवं जाव चउरिंदियाण, पंबिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वेमाणिया जहा ओहयाजीवा) પુરુષકારપરાક્રમ છે. ત્યાં સુધી બાકીને તમામ પાઠ પૂર્વોક્તરીતે જ સમજવો. એવી જ રીતે ઠેઠ ચતુરિન્દ્રિય જી સુધી પણ જાણવું. પણ પંચેન્દ્રિય તિર્યચ. નિકેનું કથન તથા વૈમાનિકે સુધીનું કથન સામાન્ય જીના કથન પ્રમાણેજ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy