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________________ भगवतीसूत्रे उदीरेइ' आत्मनैवोदीरयति-स्वयमेव कर्मणः उदीरणां करोतीत्यर्थः, 'अप्पणा चेव गरहइ ' आत्मनैव गर्हते स्वयमेव निन्दतीत्यर्थः, 'अप्पणा व संवरेइ' आत्मनैव संवृणोति-स्वयमेव कर्मणः कारणाभावं करोतीत्यर्थः, 'तं किं उदिष्ण उदीरेइ' तत् किम् उदीर्णमेवोदीरयति 'अणुदिणं उदीरेइ' अनुदीर्णमुदीरयति, 'अणुदिणं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ' अनुदीर्णम्-उदीरणाभव्यं कर्मोदीरयति । अथवा 'उदयाणंतरपच्छा कडं कम्मं उदीरेइ' उदयानन्तरपश्चात्कृतं कर्मोदीरयति-उदीर्ण कर्म उदीरयति अनुदीर्ण वा कर्मोंदीरयति अथवा अनुदीर्णम्-उदीर्णाभव्यं कर्म उदीरयति, अथवा ऐसा कहा गया है। गुर्वादिक जो होते हैं वे तो जीव के वीर्योल्लास में ही कारण होते हैं। इस प्रकार समझ लेने पर पुनः गौतमस्वामी उदोरणा को लेकर प्रभु से प्रश्न करते हैं कि-"जं तं भंते " इत्यादि । हे भदन्त ! "जंतं. जीव उस कर्म की "अप्पणा चेव" अपने आप ही " उदीरेइ " उदीरणा करता है, "अप्पणा चेव" अपने आप ही स्वयं ही “ गरहइ " गर्दा करता है-निन्दा करता है- "अप्पणा चेव " स्वयं ही "संवरेइ" कर्म के कारणों का अभाव करता है " तं किं" तो क्या वह जीव " उदिणं उदीरेइ" उदीर्ण कर्म ही कि उदीरणा करता है ? " अनुदिण्णं उदीरेइ " अनुदीर्ण कर्म की उदीरणा करता है ? " अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ " अथवा-अनुदीर्ण परन्तु उदीरणा होने योग्य कर्म की उदीरणा करता है ? या " उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेइ" उदया ४॥२७३५ भानस छे. तेथी । “अप्पणा चेव” मे ४थन थयुं छ. गुवाहात જીવના વીર્યોદ્યાસમાં જ કારણ રૂપ બને છે. આ પ્રમાણે સમજી લીધા પછી ગૌતમ સ્વામી ઉદીરણાના વિષયમાં મહાવીર मन मा प्रमाणे प्रश्न पूछे छ-"ज त भंते ! " प्रत्याहि पूज्य ! वो ते भनी “ अप्पणा चेव" पातानी ते "उदीरेइ" ही२९॥ ४२ छ. “अप्पणा चेव गरहइ" पोतानी anते ४ तेनी पडi (निंet) ४२ छ, “ अप्पणा चेव संवरेड" पोताना ते ॥ भनी स२ ४२ छ, “त कि" तो शुते १ “ उदिण्णं उदीरेइ" Sale' भनी ४ टी२५॥ ४२ छ १ “ अनुदिण्णं उदीरेइ" अनुही भनी. ही२९॥ ४२ छ? 3 "अणुदिण्यं उदीरणाभविय कम्मं उदीरेइ" मनुही ५५l२९! था योग्य भनी. l२५॥ ४२ छ ? " उदयाणंतर શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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