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प्रमेश्वन्द्रिकाटीका श० १ उ० ३ सू० ९ काङ्कावेदनी रस्योदोरणावर ६०५
टीका-' से नूणं भंते !' तद् नूनं भदन्त ! तत्-कांक्षामोहनीयं कर्म उपलक्षणात् सकलमपि कर्म जीवः किम् ' अप्पणा चेव' आत्मनैव-स्वयमेव 'उदीरेई उदीरयतिकर्मण उदीरणां करोति । तथा 'अप्पणा चेव' आत्मनैव स्वयमेव जीवः किम् ‘गरहइ' गर्हते-स्वकृतकर्मणो गीं करोति ? । तथा 'अप्पणा चेव' आत्मनैव-स्वमेव किम् 'संवरेई' संवृणोति-वर्तमानकालिककर्म न करोतोत्यर्थः । भगवानाह 'हंता गोयमा!' हन्त हे गौतम ! 'अप्पणा चेव' आत्मनैव, सच्चेव परिवाडी, नवरं उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं निज्जरेइ, एवं जाव परक्कमेइ वा) यहां पर भी पूर्वोक्त परिपाटी ही जाननी चाहिये । विशेषता यह है कि उदयानन्तरपश्चात्कृत कर्मकी निर्जरा करता है। इसी तरह कहना, यहां तक कि पुरुषकारपराक्रम है।
टीकार्थ-"से नूणं भंते " इत्यादि सूत्र द्वारा गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि " भंते" हे भदन्त ! जीव क्या "तं" कांक्षामोहनीय कर्म की तथा उपलक्षण से समस्त मोहकर्म की “ अप्पणा चेव" अपने आप ही " उदीरेइ ” उदीरणा करता है ? " अप्पणा चेव गरहइ " अपने आप ही जीव क्या उस स्वकृत कर्म की गर्दा करता है ? " अप्पणा चेव संवरेद" और क्या अपने आप ही वह कर्म का संवर करता है ? वर्तकाल में नवीन कर्मों का बंध नहीं करना-अर्थात् आस्रव का निरोध करना इसका नाम संवर है । प्रभुने इस प्रश्नका उत्तर दिया कि-"हंता गोयमा" हां गौतम ! "अप्पणा चेव" जीव अपने आप ही कर्मकी उदीरणा करता सच्चेव परिवाडी-नवर उयाणंतरपच्छाकडं कम्मं निजरेइ, एवं जाव परकमेइ वा ) मी ५९] पूर्वोत परिपाटी 2 समपी विशेषता मे छे याનન્તરપશ્ચાતકૃતકર્મની નિર્જરા કરે છે. પુરુષકારપરાક્રમ છે.” ત્યાં સુધીનું કથન અહીં પણ ગ્રહણ કરવું.
-“से नूण भंते " इत्याहि हो । गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे “ भंते" पुन्य ! शु०१ "ते" ते क्षामोनीयमानी तथा सक्षyथा समस्त भनी ५] "अप्पणा चेव" पातानी ते १ " उदोरेइ" ही४२ छ ? " अप्पणा चेव गरहइ” मने शु०१ पोताना
ते २१त भनी पड़ रै छ ? " अप्पणा चेव संवरेइ" मने शु. पोतानी on ॥ तेनुं सव२९५ (सव२) ४२ छ ?
- વર્તમાનકાળમાં નવાં કર્મોને બંધ ન બાંધવે એટલે કે આસને નિરોધ કરે તેનું નામ સંવર છે. ગૌતમના પ્રશ્નોને પ્રભુએ આ પ્રમાણે જવાબ भयो “हता गोयमा !" गौतम! “अपणा चेव" ७१ पोdirl and
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧