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________________ भगवतीसूत्रे विशेषादुदयावलिकायां प्रवेशनम् । 'वेदेंसु' अवेदयन् ‘वेदेति' वेदयन्ति 'वेदिस्संति' वेदयिष्यन्ति, एतावता वेदनस्यापि त्रिकालविषयत्वं समर्थितम् । वेदनं नाम-शुभाशुभकर्मणामनुभवनम् । 'निज्जरेंसु' निरजरयन् 'निज्जरेंति' निर्जरयन्ति 'निजरिस्संति' निर्जरयिष्यन्ति । निर्जरणं नाम-जीवप्रदेशेभ्यः कर्मणां पृथग्भवनम्। अत्र संग्रहगाथा-'कड चिय' इत्यादि । 'कड चिय' कृतं चितं, ‘उवचिय' उपचितम् , 'उदीरिया' उदीरितम् , 'वेदिया' वेदितम् , 'निज्जिन्ना' निर्जीणम्, एषु षट्सु पदेषु 'आइतिए' आदित्रिके कृत चितोपचितरूपे पदत्रये 'चउभेया' चत्वाकरेंगे । अनुदित-उदय में नहीं आये हुए-कर्म को एक प्रकार के करण द्वारा उदयावलिका में-प्रवेश कराना-अर्थात् उदय में लाना इसका नाम उदीरणा है । " वेदेसु" वेदेति "वेदिस्संति" शुभ अशुभ कर्म के उदय के अनुभव करना इसका नाम वेदन है-इस कांक्षामोहनीयकर्म को जीवोंने पूर्वकाल में वेदा है, वर्तमान में उसे वेदते रहते हैं, भविष्यकाल में भी वे उसे वेदेंगे। “निज्जरेंसु" जीवोंने पूर्वकाल में इस कांक्षामोहनीयकर्म की निर्जरा की है, “निज्जरेंति" वर्तमान में वे उसकी निर्जरा करते रहते हैं और "निज्जरिस्संति" भविष्यकाल में भी वे उसकी निर्जरा करेंगे । आत्मा के प्रदेशों से कर्मप्रदेशों का थोड़ार अलग होना इसका नाम निर्जरा है । यहां जो " कड, चिय" इत्यादि संग्रहगाथा है, उसका तात्पर्य यह है कि पूर्वोक्त प्रकार से कृत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण ये छः पद इस कांक्षामोहनीयकर्म में होते हैं अर्थात् कांक्षामोहनीयकर्म कृत होता है, कांक्षामोहनीय ધ્યકાળમાં પણ તેઓ તેની ઉદીરણ કરશે. અનુદિત ( ઉદયમાં નહીં આવેલા) કને એક પ્રકારના કરણ વડે ઉદયાવલિકામાં લાવવું તેનું નામ ઉદીરણું છે. "बेस" " वेदेति" " वेदिस्संति" शुम अशुभ मना यिनी अनुभव કરવો તેનું નામ વેદન છે-જીએ આ કાંક્ષામહનીયકર્માનું ભૂતકાળમાં વેદન કર્યું છે, વર્તમાનમાં તેઓ તેનું વેદન કરી રહ્યા છે અને ભવિષ્યમાં પણ તેઓ તેનું વેદન કરશે. “निजरेसु" वा भूतi siक्षामोडनीय भनी नि०२४॥ छे. "निजाति" पतभानमा तेसो तेनी नि । ४२त२४ छ, भने "निजरिमंति" भविष्यमा ५ तेमा तनी नि। ४२२. माभप्रदेशમાંથી કર્મપ્રદેશનું થડે છેડે અંશે દૂર થવું તેનું નામ નિર્જરા છે. અહીં જે "कड, चिय" त्यादि साथ छे. तेनो मा PAL प्रमाणे छे-पूछित પ્રકારે કત. ચિત, ઉપચિત, ઉદીરિત, વેદિત અને નિજીર્ણ આ છ પદ કાંક્ષામોહનીય કર્મમાં છે. એટલે કે કાંક્ષાહનીય કર્મ કૃત હોય છે, કાંક્ષામહનીય શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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