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________________ प्रमेयनन्द्रिकाटीका श. १ उ. २ सू०१४ असम्झ्यायुष्कनिरूपणम् ५३३ अथ भगवदुक्तमनुमोदयति-'सेवं भंते२' इत्यादि । ' सेवं भंते सेवं भंते ' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त !-हे भगवन् ! भवता यत् कथितं तदेवमेव ' सेवं भंते सेवं भंते' इत्यत्र द्विवचनम् भगवद्वाक्ये भक्तिश्रद्धाधिक्यमूचनाय । 'त्ति' इति कथयित्वा श्रद्धाभक्तिपूर्वकं गौतमो भगवन्तं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा संयमेन तपसाऽऽत्मानं भावयमानो विहरतीति ॥सू०१४॥ ॥ प्रथमशतके द्वितीयोद्देशकः समाप्तः ॥१-२॥ गया है एसा जानना चाहिये । भगवान् जो कहा उसका अनुमोदन करते हुए श्री गौतमस्वामी कहते हैं "सेवं भंते ! ति" कि हे भदन्त! आपने जो कहा है वह इसी प्रकार से है, ऐसा ही है। यहां जो द्विवचन का प्रयोग किया गया है वह भगद्वाक्य में भक्ति और श्रद्धा की अधिकता को सूचित करता है, इस बातको प्रकट करने के लिये किया गया है। · त्ति" जो शब्द है वह यह बतलाता है कि गौतमस्वामी ने इस प्रकार कह कर श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक भगवान् को वंदना की, नमस्कार किया और वन्दना नमस्कार करके संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने उचित स्थान पर विराज गए ॥सू० १४॥ ॥द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ વગેરે જે કથન કરાયું છે. તે કથન આયુષ્યના ઓછાવત્તાની અપેક્ષાએ કરવામાં આવ્યું છે તેમ જાણવું. ભગવાને જે કહ્યું તેની અનુમોદના કરતાં શ્રી ગૌતમ स्वामी ४ छ. “ सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति" 3 पूज्य! सपना देवा પ્રમાણે જ તે હકીકત છે, એ પ્રમાણે જ છે.” અહીં જે દ્વિરુક્તિ કરવામાં આવી છે તે ભગવાનના વચનમાં શ્રદ્ધા અને ભક્તિની અધિકતાનું સૂચન કરે छ, “चि" ५६ मे मतावे छे , गौतभस्वाभीमे २॥ प्रमाणे जडीने શ્રદ્ધા અને ભક્તિપૂર્વક ભગવાનને વંદણ નમસ્કાર કર્યો, અને વંદણ નમસ્કાર કરીને સંયમ તથા તપથી આત્માને ભાવિત કરતા થકા પોતાના ઉચિત સ્થાને मेसी गया ॥सू. १४॥ ॥ द्वितीय उद्देश सभात ॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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