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भगवतीसूत्रे मायास्तिस्रः क्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा-आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया । असंयतानां चततः क्रिया क्रियन्ते, तद्यथा- आरम्भिकी पारिग्रहिकी मायाप्रत्यया अप्रत्याख्यानक्रिया, मिथ्यादृष्टीनां पञ्च-तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानप्रत्यया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया । सम्यग्मिथ्यादृष्टीनां पञ्च ॥७॥ ___टीका-'मणुस्सा जहा नेरइया ' मनुष्या यथा नैरयिकाः, यथा नैरयिकास्तथा मनुष्या वाच्याः मनुष्यवर्णनं नैरपिकवर्णनवद् विज्ञेयमिति भावः । की तीन क्रियाएँ होती हैं । ( तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं-(आरंभिया पारिग्गहिया मायावत्तिया) आरंभिकी पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया । असंजया णं चत्तारि किरियाओ कजंति) असंयत मनुष्यों को चार क्रियाएँ होती है (तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं (आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणवत्तिया ) आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानमत्यया, (मिच्छादिट्ठीणं पंच) मिथ्यादृष्टि मनुष्यों के पाँच क्रियाएँ होती हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं ( आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणवत्तिया) आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानप्रत्यया और (मिच्छादंसणवत्तिया) मिथ्यादर्शनप्रत्यया सम्मामिच्छादिहोणं पंच) सम्यगूमिथ्यादृष्टियों के पांच क्रियाएँ होती हैं।
टीकार्थ--" मणुस्ता जहा नेरइया" मनुष्य नारकों जैसे हैंअर्थात् मनुष्यों का वर्णन नैरयिक के वर्णन की तरह है। " णाणत्तं" भनुष्ये। डाय छ तेभने १३२मातनी १५ लिया। डीय छ. (तं जहा) ते मा प्रमाणे छ (आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया ) (१) मा मिश्री, (२) पारिश्रडिभी, मन (3) मायाप्रत्यया. ( असंजयाणं चत्तारि किरियाओ कज्जति ) मसयत सभ्यष्टि मनुष्याने या२ लिया। डाय छे. (तं जहा) ते २॥ प्रमाणे . ( आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाणवत्तिया) (१) मानिधी, (२) पारियलिटी, (3) भायाप्रत्यया मन (४) अप्रत्याज्यान प्रत्यया. (मिच्छादिद्वीणं पंच) मिथ्याष्टि मनुष्याने पांय लियास डाय छ. (तं जहा) ते म प्रभारी छ. (आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणवत्तिया) (१) मामिडी, (२) पारिश्रडिभी, (3) मायाप्रत्यय!. (४) अप्रत्याभ्यान प्रत्यया भने (५) (मिच्छादसणवत्तिया) मिथ्याशन प्रत्यया से पायावी. (सम्मामिच्छादिद्वीणं पंच) सभ्य मिथ्याल्टि (
भिटि)नी ५५४ मे पाय डियागोडाय . Rथ-" मणुरसा जहा नेरइया" माणुसार्नु पणन नाना पाणन २१ छ. “णाणतं" ५ तेमा नये भुन लेह छ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧