SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 466
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रयमैचन्द्रिकाटीका श० १ उ० २ सू० ५ पृथिवीकायिकादिजीवनिरूपणम् ४४३ यन्तोऽपि मिथ्याष्टित्वेन अमनस्कत्वेन वा पूर्वोपार्जिताशुभकर्मणः परिणामोऽयम् ' इति नावगच्छन्ति, मत्तमूर्छितादिवत् , अतएवोक्तम्-'अनिदया वेदनां वेदयन्ती-'ति । ' से तेणटेणं ' तत्तेनार्थेन तेन कारणेन हे गौतम ! ' एवमुच्यते पृथिवीकायिकाः सर्वे समवेदना इति । अथ क्रियाविषये पृच्छति-'पुढवीकाइया गं भंते ' पृथिवीकायिकाः खलु हे भदन्त ! 'सव्वे समकिरिया' सर्वे समक्रियाः समानक्रियावन्तः किम् ? इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'हंता समकिरिया' हन्त समक्रियाः । अत्र कारणं पृच्छति-' से केणद्वेणं० ' तत्केनार्थेन केन कारणेन एवमुच्यते पृथिवीकायिकाः सर्वे समक्रिया इति । कारणमाह- गोयमा' हे गौतम ! क्योंकि पृथिवीकायिक जीव वेदना को भोगते हुए भी मिथ्यादृष्टि होने से अथवा अमनस्क होने से मत्त और मूच्छित हुए व्यक्ति की तरह "पूर्वोपार्जित अशुभकर्मों का यह फल है" यह नहीं जानते हैं । इसीलिये वे “अनिद्या वेदनां वेद्यन्ति " अनाभोगरूप से वेदना को भोगते रहते हैं " ऐसा कहा है। " से तेणडेणं" इसलिये हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि समस्त पृथिवीकायिक एकसरीखी वेदनावाले हैं । अब क्रिया के विषय में गौतम प्रभु से प्रश्न कर रहे हैं कि हे भदन्त ! " पुढविकाइयाणं भंते ! सव्वे समकिरिया" पृथिवीकायिक समस्त जीव क्या एकसी क्रियावाले होते हैं ? प्रभुने इस पर उनसे कहा "हंता समकिरिया " हां ! समस्त पृथिवीकायिक जीव एकसी क्रियावाले होते हैं। पुनः प्रभु से गौतमने पूछा कि हे भदन्त ! “से केणटेणं" आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि समस्त पृथिवीकायिक जीव एकसी क्रियावाले होते हैं ? तब कारण बताते हुए प्रभु उनसे कहते हैं તથા મનરહિત હોવાથી મત્ત અને મૂચ્છિત વ્યક્તિની જેમ આ પૂર્વે ઉપાર્જન ४रेस मशुम भेनि ५० छे." से सम शता नथी. तेथी ते “ अनिदया वेदनां वेदयन्ति " " मना३चे वहन ले ता २९ छ” से धुं छे. " से तेणटेणं०" उ गीतम! ते १२णे ई मे पृथ्वीजयन मा જી એક સરખી વેદનાવાળા હોય છે. હવે ક્રિયાના વિષયમાં ગૌતમ સ્વામી भडावीर प्रभुते प्रश्न पूछे छे “ पुढवीकाइयाणं भंते सव्वे समकिरिया" હે પૂજય ! શું પૃથ્વીકાયના બધા જ એક સરખી કિયાવાળા હોય છે ? त्तर-" हंता समकिरिया " , पृथ्वीजय मा पो सभी यिा. पामा डाय छे. ३री गौतम स्वामी पूछे छे “से केणट्रेणं भंते०" पून्य ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે પૃથ્વીકાયના બધા જીવો એક સરખી ડ્યિા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy