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________________ ४०६ भगवतीसूत्रे ऽविशुद्धवर्णतरकाः तत् तेनार्थेन गौतम ! एवम् । नैरयिका भदन्त ! सर्वे समलेश्यकाः ! गौतम ! नायम : समर्थः। तत्केनार्थेन यावत् नो सर्वे समलेश्यकाः ? गौतम ! नैरयिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पूर्वोपपन्नकाश्च पश्चादुपपन्नकाश्च । तत्र खलु ये ते पूर्वोपपन्नकास्तेविशुद्धलेश्यतरकाः, तत्र ये ते पश्चादुपपन्नकास्ते जो पूर्वोपपन्नक नारक हैं वे विशुद्ध वर्णवाले होते हैं, और (तत्थणं जे ते पच्छोववन्नगा, ते णं अविसुद्धवनतरागा) जो पश्चादुपपन्नक होते है वे अविशुद्ध वर्णवाले होते है । (से तेणटेणं गोयमा एवं वुच्चइ०) इस कारण हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि सब नारकीयजीव समान वर्णवाले नहीं हैं । (नेरइयाणं भंते ! सव्वे समलेस्सा?) हे भदन्त ! समस्त नारकीय जीव क्या एक सी लेश्यावाले होते हैं ? ( गोयमा! णो इणडे समडे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । (से केणठेणं जाव नो सव्वे समलेस्सा) हे भदन्त ! आप ऐसा क्यों-किस कारणसे कहते हैं यावत् समस्त नारकीय जीव समान लेश्यावाले नहीं होते हैं। (गोयमा) हे गौतम! (नेरइया दुविहा पन्नत्ता) नारकीय जीव दो प्रकारके कहे गये हैं (तं जहा ) वे दो प्रकार ये हैं-(पुव्वोववण्णगा य पच्छोववण्णगाय) एक पूर्वोपपन्नक और दूसरे पश्चादुपपन्नक (तत्थ णं जे ते पुचोववण्णगा ते णं विसुद्धलेस्स तरागा) इनमें जो पूर्वोपपन्नक नारकजीव हैं જે પૂર્વોપપન્નક નારક જ હોય છે તેઓ વિશુદ્ધ વર્ણવાળાં હોય છે, અને ( तत्थणं जे ते पच्छोववन्नगा, तेणं अविसुद्ध वन्नतरागा ) ॥ पश्चा५५न्न डायछ तेसो भविशुद्ध वाज डाय छे. (से तेण णं गोयमा ! एवं वुच्चइ० ) ते २0 ड गौतम ! हुमे छु समस्त ना२४ । સમાન વર્ણવાળાં હોતાં નથી. (नेरइयाणं भंते ! सव्वे समलेस्सा ?) 3 महन्त ! समस्त ना२४ । से सभी वेश्यावण डाय छ ? (गोयमा ! णो इणट्रे समटे) 3 है गौतम ! मेडातु नथी. (से केणद्वेणं जाव नो सव्वे समलेस्सा ?) 3 ભદન્ત ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે સમસ્ત નારક છે સમાન वेश्यावi sai नथी ? (गोयमा ! ) 3 गौतम ! (नेरइया दुविहा पण्णत्ता) ना२४ ७ मे २॥ ४झछ. (तंजहा ) ते १२॥ २॥ प्रमाणे छ. (पुव्वोववण्णगा य पच्छोववण्णगा य) पूर्वा५पन्न मने पश्चा५पन्न. ( तत्थणं जे ते पुन्योववण्णगा तेणं विसुद्धलेस्सतरागा) तेभान रे पू શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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