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________________ ३९२ भगवतीसूत्रे नैरयिकाः नो सर्वे समाहाराः नो सर्वे समशरीराः नो सर्वे-समोच्छ्वासनिःश्वासाः गौतम ! नैरयिकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-महाशरीराश्च, अल्पशरीराच, तत्र ये ते महाशरीरास्ते खलु बहुतरान् पुद्गलानाहरन्ति, बहुतरान् पुद्गलान् परिणमयन्ति, बहुतरान् पुद्गलानुच्छ्वसन्ति, बहुतरान् पुद्गलान् निःश्वसन्ति, अभी(समाहारा ) समान आहार वाले होते हैं क्या ? (सव्वे समसरीरा-समस्त नारकीय जीव समान शरीर वाले होते हैं क्या ? (सव्वे समुस्सास नीसासा) समस्त नारक जीव समान उच्छ्वासनिःश्वास वाले होते हैं क्या ? (गोयमा ! नो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ ठीक नहीं है अर्थात् यह बात ठीक नहीं है । (से केणटेणं भंतेएवं घुच्चइ ?) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण सेकहते हैं कि (नेरइया नो सव्वे समाहारा, नो सव्वे समसरीरा, नो सव्वे समुस्सासनीसासा) समस्त नारकीय जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले और समान उच्छ्वास निःश्वासवाले नहीं होते हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (नेरइया दुविहा पण्णत्ता) नारक जीव दो प्रकार के होते हैं (तं जहा) वे दो प्रकार ये हैं- (महासरीरा य अप्पसरीरा य) एक महाशरीर वाले और दूसरे अल्पशरीर वाले । (तत्थणं) इनमें (जे) जो (महासरीरा) बड़े भारी शरीरवाले नारकीयजीव हैं ( ते णं ) वे ( बहुतराए पोग्गले आहारेंति) बहुसंख्यक पुद्गलोंका आहार करते हैं और(बहुतराए पोग्गले परिणामेंति) बहुसंख्यकपुद्गलों को अपने शरीररूपमें परिणमाते हैं। (बहुतराए पोसमान शा.२७॥ जय छ ? ( सव्वे समसरीरा) शु समस्त ना२४ को समान शरी२वा डाय छ ? ( सव्वे समुस्सास नीसासा) शु समस्त न॥२४वो सभान वास-नि: शासवाणा हाय छे ? (गोयमा.! नो इणद समहे) गौतम ! म म ०५२।१२ नथी (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ) महन्त ! मा५ ॥ ॥२णे सयु ४३ छ3 ( नेरइया नो सव्वे समाहारा, नो सम्वे समसरीरा, नो सव्वे समुस्सास नीसासा ?) समस्त ना२४०वो समान माडावां , समान शरीरवाजा अने समान छूपासनिःश्वासात नथी ? ( गोयमा !) गौतम ! (नेरइया दुविहा पण्णत्ता) ना२४ वो मे प्रारना डाय छे. (तं जहा) ते २॥ प्रमाणे छ-(महासरी। य अप्पसरीरा य) मे भडाशरीरवाला मन भी शरीरवाजi. (तत्थणं) मेमा (जे) 2 (महासरीरे) घi मारे शरीरवाजi ना२४ वो छ. ( तेणं) तेमा (बहुतराए पोग्गले आहारे ति) भाटी सध्यामा पालोना माहा२ रे छ, (बहुतराए पोग्गले परिणामेंति) मने पहुसज्य पुगतान શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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