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___ भगवतीसूत्रे अवश्यमेव वेदयति, तथैव तस्योदितत्वात् । 'जहा दुक्खणं दो दंडगा' यथा दुःखेन द्वौ दण्डकौ यथा दुःखमधिकृत्य एकत्वबहुत्वाभ्यां द्वौ दण्डको कथितौ 'तहा आउएणपि दो दंडगाएगत्तपुहत्तिया' तथा आयुष्केणापि द्वौ दण्डकौ एकत्व पृथक्त्वकौ आयुरधिकृत्य एकत्वबहुत्वाभ्यां द्वौ दण्डको विज्ञेयाविति भावः । एक जीवमाश्रित्य प्रथमोदण्डकः, अनेकजीवानाश्रित्य द्वितीयो दण्डक इति । 'एगत्तेणं' एकत्वेन-एकवचनमाश्रित्य 'जाव वेमाणिया' यावद् वैमानिकाः नैरयिकादारभ्य वैमानिकपर्यन्तं चतुर्विशतिर्दण्डका विज्ञेयाः। 'पुहत्तेण वि तहेव' पृथक्त्वेनापि तथैव पृथक्त्वं बहुत्वमिति बहुवचनेनापि तथैव-पूर्वोक्तप्रकारेणैव व्याख्येयम्॥सू०१॥ समय उदयप्राप्त उस आयुकर्मका वह वेदन अवश्य ही करता है, क्योंकि वह उस रूप से उद्य में आरहा है । " जहा दुक्खेणं दो दंडगा" जिस प्रकार दुःख अर्थात् कर्म को लेकर एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से दो दण्डक कहे गये हैं-" तहा आउएणंपि दो दंडगा एगत्तपुहत्तिया" उसी प्रकार से आयुकर्म को लेकर भी एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा से दो दण्डक जानना चाहिये । एक जीव की अपेक्षा प्रथमदण्डक, और अनेक जीव अपेक्षा द्वितीय दण्डक है। " एगत्तेणं जाव वेमाणिया, पुहुत्तेणं वि तहेव” एकवचन को आश्रित करके यावत् वैमानिक तक अर्थात् नारक से लेकर वैमानिक पर्यन्त चौवीस दण्डक जानना चाहिये, इसी तरह से बहुवचन को आश्रित करके नारक से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डक समझना चाहिये ।।सू०१॥ ત્યાં ઉત્પન્ન પણ થઈ ગયે, ત્યારે ઉદય પ્રાપ્ત તે આયુકર્મનું તે જીવ અવશ્ય વેદન ४२ छ, ४१२९१ ते ३ ते मायुम हयम मावी. २युं होय छे. “जहा दुक्खेणं दो दंडगा" वी रीते दुसमनी अपेक्षा अपयन मने मवयननी माश्रय
शन में हैं. ४i छ. “ तहा आउएणपि दो दंडगा एगत्त पुहत्तिया ” मे०४ પ્રમાણે આયુકર્મની અપેક્ષાએ એકવચન અને બહુવચનને આશ્રય કરીને બે દંડક સમજવા જોઈએ. એક જીવની અપેક્ષાએ પ્રથમ દંડક અને અનેક
योनी अपेक्षा मीन ६४ . “ एगत्तेणं जाव माणिया, पुहत्तेणं वि तहेव” सेक्यननी अपेक्षा न॥२४थी छने वैमानि: सुधा यावीस ४४ સમજવા, એજ પ્રમાણે બહુવચનની અપેક્ષાએ નારથી લઈને વૈમાનિ સુધી ચાવીસ દંડક સમજવા જોઈએ, તે સૂઇ ૧ /
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧