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________________ ३६८ भगवती सूत्रे " " मित-मयूरित - लवकित - गुल्मित-गुच्छित - यमलित- युगलित- विनमित- प्रणमितसुविभक्त पिण्डीमञ्जर्यवतंसकधरम् । तत्र - ' कुसुमिय' कुसुमितं संजातकुसुमम्, 'माइय' मयूरितं = मयूरपक्षवत्संजातविचित्रपुष्पम्, 'लवइय' लवकितं = संजातपल्लवम्, 'थवइय' स्तबकितं = संजातपुष्पस्तवकम्, 'गुलइय' गुल्मितं = संजातगुल्मकं, गुल्मं च लतासमूहः 'गुच्छिय' गुच्छितं = संजातगुच्छम् गुच्छश्व पत्रसमूहः ननु - स्तबकगुच्छौ समानार्थको कोशादौ तथाऽभिधानात् ततः कथं स्तबकगुच्छयोः पृथक्कथनम् ? इत्यत्राह - स्तवकितं पुष्पकृतं, गुच्छितं तु पत्रकृतमिति न दोषः । ' जमलिय ' यमलितं तत्तत्तरूणां समश्रेणितया व्यवस्थितत्वाद् यमलवृद्धासमानत्वेन यमलितम् 'जुबलिये' युगलितं तत्तत्तणां युगलत्वेन संजाततया युगलितम्, 'त्रिणमिय' विनमितं - वि= विशेषेण पुष्पफलसंभारेण नमित=नम्रितम्, ' पण मिय' प्रणमितं- ते नैव पुष्पपत्रफलादिभारेण प्र=प्रकर्षेण नमितं प्रणमितम् । " पिंडी मंजरी वर्डिसगधरे) कुसुमयुक्त हुआ, मयूरपक्षके जैसे उद्भूत हुए पुष्पों से युक्त हुआ, लवकित उत्पन्न हुए पल्लवों से युक्त हुआ, स्तबकित - उद्धृत पुष्पों के गुच्छों से युक्त हुआ, गुल्मित - लतासमूहसे वेष्टित हुआ, गुच्छित - पत्तों के समूहरूप गुच्छों से युक्त हुआ, (यद्यपि कोश आदिमें स्तबक और गुच्छ ये दोनों शब्द समानार्थक कहे गये हैं फिर भी यहाँ पर जो इन दोनों का ग्रहण किया गया है उससे यही जानना चाहिये कि पुष्पों के समूह का नाम स्तबक है और पत्तों के समूह का नाम गुच्छ है ) यमलित-उन वक्षों को समश्रेणीमें व्यवस्थित होनेके कारण यमल के जैसा प्रतीत होनेसे यमलयुक्त हुआ, युगलित उन २ वृक्षों को जड़े हुए रूप से उत्पन्न होनेके कारण युगल से युक्त हुआ, विनिमित- पुष्पों और फलों के भारसे झुका हुआ, प्रणमितपुष्पों और फलों के भार से विशेष रूप से झुका हुआ तथा सुविभक्त સમાન ઉગી નીકળેલાં પુષ્પોથી યુક્ત, લકિત–પદ્મવેશથી युक्त, स्वमतिઉદ્ભૂત પુષ્પાના ગુચ્છાથી યુક્ત, ગુસ્મિત-લતા સમૂહથી વીંટળાયેલાં. ગુચ્છિત પાંદડાંના સમૃહરૂપ ગુચ્છાથી યુક્ત, ( જો કે શબ્દકોશ આદિમાં ૮ તુમક અને ‘ગુચ્છ ’ને સમાનાર્થી કહ્યા છે પણ અહીં પુષ્પોના સમૂહને માટે ‘સ્તખક’ અને પર્ણોના સમૂહને માટે ‘ગુચ્છ ’ શબ્દ વપરાય છે. ) યમલયુક્ત, ( તે વૃક્ષા સમશ્રેણીમાં ઉગેલાં હાવાથી યમલના જેવાં લાગતાં હતાં તેથી યમલિત વિશેષણને પ્રયાગ થયા છે. ) યુગલિત, ( તે વૃક્ષેા એકત્ર ઉત્પન્ન થયેલાં હોવાથી યુગલયુક્ત કહ્યાં છે. ) વિનમિત, ( પુષ્પો અને કળાના ભારથી લચી પડેલાં ) प्रशुभित (पुण्यो भने इमोना लारथी वधारे प्रभाशुभां जूसां) तथा (सुविभक्त " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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