SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-संयताश्चासंयताश्च । तत्र खलु ये ते संयतास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-प्रमत्तसंयताश्चाप्रमत्तसंयताश्च, तत्र खलु ये तेऽप्रमत्तसंयतास्ते नो आत्मारम्भाः नो परारम्भाः यावदनारम्भाः, तत्र ये ते प्रमत्तसंयतास्ते शुभयोग प्रतीत्य नो आत्मारम्भाः नो परारम्भाः यावदनारम्भाः अशुभयोगं प्रतीत्य आत्मारम्भा सिद्ध हैं । (सिद्धाणं नो आयारंभा जावअणारंभा) सिद्ध न आत्मारंभ हैं, न परारंभ हैं, न तदुभयारंभ हैं किन्तु अनारंभ हैं । (तत्थणं जे ते संसारसमावण्णगा ते दुविहा पन्नत्ता) जो संसारसमापन्नक जीव हैं वे दो प्रकार के हैं । (तं जहा) जैसे-(संजया य असंजया य) संयत और असंयत (तत्थणं जे ते संजया ते दुविहा पन्नत्ता) इनमें जो संयत हैं वे. दो प्रकार के कहे गये हैं (तं जहा) वे ये हैं-(पमत्तसंजया य अपमत्तसंजया य) प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत (तत्थणं जे ते अपमत्तसंजया तेणं नो आयारंभा नो परारंभा जाव अणारंभा) इनमें लो अप्रमत्तसंयत जीव हैं वे न आत्मारंभ हैं न परारंभ हैं, यावत् अनारंभ हैं । (तत्थणं जे ते पमत्तसंजया ते सुहजोगं पड्डुच्च नो आयारंभा, नो परारंभा जाव अणारंभा) जो प्रमत्तसंयत हैं वे शुभयोग की अपेक्षा से न आत्मारंभ हैं, न परारंभ हैं यावत् अनारंभ हैं (असुहजोगं पडुच्च आयारंभा वि जावणोअणारंभा) अशुभयोग की अपेक्षा से वे आत्मारंभ भी हैं यावत्समापन ह. (सिद्धाणं नो आयारम्भा जाव अणारम्भा) सिद्ध मामाली नथी, ५२१२मी नथी, तहुनयाली नथी ५५] मनाली डाय छे. ( तत्थणं जे ते संसारसमावण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता) ते ससा२ समापन्न छ तेना में ४॥२ छ. (तं जहा) ते ॥ २॥ प्रमाणे छ-(संजया य असंजया य) सयत मने मसयत. (तत्थणं जे ते संजया ते दुविहा पन्नत्ता) तेमांना सयतन में २ छ ते (तंजहा.) २मा प्रमाणे छे-(पमत्त संजया य अपमत्तसंजया य) (१) प्रभत्त सयत भने (२) मप्रमत्त संयत, ( तत्थणं जे ते अप्रमत्तसंजया तेणे नो आयारम्भा नो परारम्भा जाव अणारम्भा) तेभाना रे ममत्त सयत | હોય છે તેઓ આત્મારંભી નથી, પરારંભી નથી, તદુભયારંભી નથી પણ અના ली छ. (तत्थणं जे ते पमत्तसंजया ते सुहजोगं पडुच्च नो आयारम्मा, नो परारम्भा, जाव अणारम्भा) २ प्रभत्तसयत ७ डाय छ तेसो शुभ योगनी अपेक्षा આત્મારંભી નથી, પરારંભી નથી, તદુભયારંભી નથી, પણ અનારંભી છે. (असहजोगं पडुच्च आयारम्भा वि जाव णो अणारम्भा) अशुभयोगनी अपेક્ષાએ તેઓ આત્મારંભી છે, પરારંભી છે, તદુભયારંભી છે પણ અનારંભી નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy