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भगवतीस्ने गौतम ! सर्वस्तोकाः पुद्गला अनास्वाद्यमानाः, अस्पृश्यमाना अनन्तगुणाः। द्वोन्द्रिया भदन्त ! यान् पुद्गलानाहारतया गृहन्ति ते तेषां पुद्गलाः कीदृशतया भूयोभूयः परिणमंति, गौतम ! जिवेन्द्रिय स्पर्शेन्द्रिय विमात्रतया भूयोभूयः परिणमंति, द्वीन्द्रियाणां भदन्त ! पूर्वाहताः पुद्गलाः परिणताः तथैव यावत् नो अचलितं कर्म निर्जरयन्ति ।।०२०॥ पुद्गलों में कौन पुद्गल किन पुद्गलों से अल्प हैं ?, कोन पुद्गल किन पुद्गलों से बहुत हैं ? कौन पुद्गल किन पुलों के तुल्य है ? कौन पुद्गल किन पुद्गलों से विशेषाधिक हैं ? ( गोयना ! ) हे गौतम ! (सव्वत्थो वा पुग्गला अणासाइजमाणा, अफासाइजमाणा अर्णतगुणा ) हे गौतम ! जो पुद्गल चखने में नहीं आये हैं वे पुद्गल सब से कम हैं और जो पुद्गल स्पर्श करने में नहीं आये हैं वे अनंतगुणे हैं। (बेइंदियाणं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गिपहंति तेणं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुजोर परिणमंति?) हे भदन्त ! जिन पुद्गलों को दो इन्द्रिय जीव आहाररूपसे ग्रहण करते हैं उनके वे पुद्गल किस आकार से बार२ परिणमते हैं ? (गोयमा) हे गौतम (जिभिदिय फासिदिय मायाए भुजो२ परिणमंति) जिह्वाइन्द्रिय और स्पर्शनइन्द्रिय की विविधता से वे पुद्गल बारंबार परिणमते हैं । (बेइंदियागं पुवाहारिया पोग्गला परिणया?) हे भदन्त ! दो इन्द्रिय जीवों के द्वारा पूर्वकाल में आहाररूप से ग्रहण किये हुए पुद्गल परिणत हो चुके हैं क्या ? (तहेव जाव नो अचलियं
પુદ્ગલોથી ઓછાં છે ? કયાં પુદ્ગલો કયાં કરતાં વધારે છે ? ક્યાં પુગલો ક્યાં पुगतानी समान छ ? ४यां पुगतो या पुगतोथी विशेषाधि छ ? (गोयमा!)
गीतम ! (सव्वत्थो वा पुग्गला अणासाइज्जमाणा, अफासाइज्जमाणा अणंत गुणा) જે પગલો ચાખવામાં આવ્યાં હતાં નથી તે પુદ્ગલોની સંખ્યા સૌથી ઓછી હોય છે, અને સ્પર્શ કર્યા વિનાના પુદ્ગલોની સંખ્યા અનંત ગણી હોય છે.
( बेइंदियाणं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति तेणं तेसिं पुग्गला कीसत्ताए भुज्जो २ परिणमंति ?) 3 महन्त ! मेन्द्रिय पोरे पुगतान આહારરૂપે ગ્રહણ કરે છે તે પુદ્ગલો કેવા આકારે વારંવાર પરિણમે છે?
(गोयमा!) गौतम ! (जिभिदिय फासिदिय वेमायाए भुज्जो २ परिणमति) જિહવા ઈન્દ્રિય અને સ્પર્શેન્દ્રિયની વિવિધતાએ તે પુગલો વારંવાર પરિણમે છે. ( बेइंदियाणं पुव्वाहारिया पोग्गला परिणया ?) हे महन्त ! मेन्द्रिय यो દ્વારા પૂર્વકાળે આહારરૂપે ગ્રહણ કરાયેલ પુદ્ગલ પરિણત થઈ ચુક્યાં હોય છે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧