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________________ २५६ भगवतीस्ने घते, तत्र-योऽसौ आभोगनिर्वर्तितः सजघन्येन चतुर्थभक्तेन उत्कृष्टेन दिवसपृथक्स्वेनाहारार्थः समुत्पद्यते, शेषं यथा असुरकुमाराणाम् , यावत् नो अचलितं कर्म निर्जरयंति एवं सुवर्णकुमाराणामपि यावत् स्तनितकुमाराणामिति ॥सू०१८॥ टीका-नागकुमारवक्तव्यतामाह-' नागकुमाराणं भंते' इत्यादि।'नागकुमाराणं भंते' नागकुमाराणां भदन्त ! 'केवइयं कालं' कियन्तं कालं 'ठिई' स्थितिः ‘पन्नत्ता' प्रज्ञप्ता ? । उत्तरमाह-'गोयमा' हे गौतम ! नागकुमाराणां स्थितिः 'जहन्नेणं' जघन्येन 'दसवाससहस्साई' दशवर्षसहस्राणि 'उक्कोसेणं' रूपसे उत्पन्न होती रहती है । (तत्थणं जे से आभोगनिव्वत्तिए से जहण्णेणं चउत्थभत्तस्स, उक्कोसेणं दिवसपुहत्तस्त) तथा जो आभोगनिवर्तित आहार है उसकी अभिलाषा जघन्यसे एक दिवसके बाद और उत्कृष्टसे दिवसपृथक्त्वके बाद होती है। (सेसं जहा असुरकुमाराणं जाव नो अर्यालय कम्मं निज्जरंति, एवं सुवण्णकुमाराणं वि जाव थणियकुमारा. ति) बाकीका समस्त विषय असुरकुमारोंकी तरह “यावत् नो अचलियं कम्मं निज्जरंति" यावत् अचलित कर्मकी निर्जरा नहीं करते हैं।" यहां तकके पाठके समान जानना चाहिये । इसी तरहसे सुवर्णकुमारोंके विषयमें भी स्थिति आदिकी समानता जाननी चाहिये । यह समानता यावत् स्तनितकुमारों तक जाननी चाहिये । टीकार्थ-यहां पर जो 'नागकुमारोंकी कितनी स्थिति कही गई है ? इस प्रश्नका उत्तर दिया गया है उस विषयमें ऐसा जानना चाहिये कि जो उत्कृष्टस्थिति कुछ कम दो पल्योपमकी कही गई है वह उत्तर रे छ. ( तत्थ णं जे से आभोगनिव्वत्तिए से जहण्णेणं च उत्थभतस्स, उक्कोसेणं दिवस पुहत्तस्स ) तथा २ मालगनिवर्तित माडा२ छ तेनी छ। माछामा ઓછા એક દિવસને આંતરે અને વધારેમાં વધારે દિવસ પૃથકત્વને આંતરે થાય छ. (सेसं जहा असुरकुमाराणं जाव नो अचलिय कम्म निज्जरंति, एवं सुवण्णकुमा राणं वि जाव थणियकुमाराणंति ) मालीनी मा विषय असुरुमारानी सभ "यावत नो अचलियं कम्म निज्जरंति"-"-मयसित भनी नि२४२ता नथी" ત્યાં સુધીના પાઠ પ્રમાણે જ સમજે. એજ પ્રમાણે સુવર્ણ કુમારોના વિષયમાં પણ સ્થિતિ આદિની સમાનતા જાણવી. આ સમાનતા સ્વનિતકુમાર સુધીના વિષયમાં સમજવાની છે. ટીકાઈ_આ સૂત્રમાં “નાગકુમારની સ્થિતિ કેટલી કહી છે?” આ પ્રશ્નના જવાબમાં વધારેમાં વધારે સ્થિતિ બે પલ્યોપમથી થોડી ઓછી કહે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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