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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १ उ. १ सू०९ भदन्त-शब्दस्य व्याख्या १४७ कश्च, तथा च-हे भदन्त !, इति हे कल्याणस्वरूप!, अथवा-हे सुखस्वरूप !, अथवा भज्यते सेव्यते मोक्षार्थिभिरसौ भजन्तः, अथवा भजते सेवते मोक्षमार्ग ज्ञानदर्शनचारित्ररूपं यः स भजन्तः, अथवा ज्ञानतपोगुणदीप्त्या भ्राजते इति भ्राजन्तः! अथवा-भयान्तः-भयस्यान्तकारकः । अथवा भवस्य चतुर्गतिकस्यान्तकारको भवान्तः, एतेषां संबोधने हे भदन्त ! इत्यादि । सर्वेषां पृषोदरादित्वासिद्धिः। अयं च आदितआरभ्य भंते ' पर्यन्तः सन्दर्भः पञ्चमाङ्गस्य प्रथमशतकस्य प्रथमोद्देशकसंबन्धं प्रदर्शयितुं कथितः । अथानेन संबन्धेन प्राप्तस्य पश्चमाङ्मप्रथमशतकप्रथमोद्देशकस्य प्रथमं सूत्रम्-'चलमाणे चलिए' इत्यादि। शब्द का अर्थ हे कल्याणस्वरूप ! अथवा हे सुखस्वरूप? ऐसा होता है। अथवा-" भज्यते-सेव्यते मोक्षार्थिभिरसौ भजन्तः" जो मोक्षार्थियों द्वारा सेवित होता है वह भजन्त है । अथवा-"भजते सेवते मोक्षमार्ग यः सः भजन्तः" जो सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्षमार्ग का सेवन करता है वह भजन्त है । अथवा " ज्ञानतपोगुणदीप्त्या भ्राजते इति भ्राजन्तः" ज्ञान, तप और गुणों की दीप्ति से जो चमकता है वह भ्राजन्त है। अथवा-जो भयका नाशकारक है वह भयान्त है, अथवा चतुर्गतिरूप भव का जो विनाशक है वह भवान्त है । इनके संबोधन में ये भदन्त भजन्त आदि शब्द बने हैं । इन सब शब्दों की सिद्धि पृषोदरादि गणसे हुई है। आदि से लेकर "भन्ते" तक का यह संदर्भ पंचम अङ्ग-भगवती सूत्र के प्रथम शतक के प्रथम उद्देशक के संबंध को दिखानेके लिये कहा गया है । इस संबंध से प्राप्त पंचम अङ्गके प्रथम शतकके प्रथम उद्देशक २१३५ अथवा ई सुम१३५ थाय छे. मथq!-"भज्यते-सेव्यते मोक्षार्थिभिरसौ. भजन्तः” हेर्नु भाक्षार्थी द्वारा सेवन थाय छे ते मत छ. अथवा " भजते-सेवते मोक्षमार्ग इति यः सः भजन्तः " सभ्य हशन माहि५ भाक्षभागनुं सेवन छ तने सन्त छ. अथवा-" ज्ञानतपोगुणदीप्त्या भ्राजते इति भ्राजन्तः " ज्ञान, त५ भने गुणानी तिथी 2 या छ तेने भ्रान्त छ. अथवा-2 भयन नाश ४२॥२ छ. ते 'भयान्त' छ, अथवा ચાર ગતિરૂપ ભવને જે વિનાશક છે તેને “ભવાન્ત” કહે છે. તેમને સંબેધવાને માટે તે ભદન્ત, ભજન્ત આદિ શબ્દ વપરાય છે. પૃદરાદિ ગણ દ્વારા આ ५॥ शहीनी सिद्धि थाय छे. माहिथी २३ ४ीने “भन्ते " सुधाना शासन પાંચમાં અંગ–ભગવતીસૂત્ર–ના પહેલા શતકના પહેલા ઉદ્દેશકને સંબંધ બતાવવાને માટે કહેવામાં આવેલ છે. આ સંબંધથી પ્રાપ્ત પાંચમાં અંગના પહેલા શતકના पडदा देशवें प्रथम सूत्र "चलमाणे चलिए" त्यादि छे.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧