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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १७.१०८ गौतमस्य जातश्रद्धादिविशेषणवर्णनम् १३९
उत्पन्नश्रद्धः उत्पन्नसंशयः उत्पन्नकुतूहलः संजातश्रद्धः संजातसंशयः संजातकुतूहलः, समुत्पन्नश्रद्धः समुत्पन्नसंशयः समुत्पन्न कुतूहल: उत्थया उत्तिष्ठति, उत्थया उत्थाय यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य श्रमण भगवन्तं महावीरं त्रिःकृत्व आदक्षिण - प्रदक्षिणं करोति, कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्त्विा नात्यासन्ने नातिदूरे शुश्रूमाणो नमस्यन् अभिमुखः विनयेन प्राञ्जfreyटः पर्युपासीन एवमवादीत् ॥ सू० ८ ॥
उत्पन्नश्रद्धावाले ( उप्पण्णसंसए) उत्पन्न संशयवाले, (उप्पण्णको ऊहल्ले) उत्पन्नकौतूहलवाले ( संजायस डे ) संजातश्रद्धावाले, (संजायसंसए) संजात संशयवाले, (संजायकोऊहल्ले ) संजात कौतुहलवाले, (समुप्पण्णसङ्के ) समुत्पन्नश्रद्धावाले, (समुप्पण्णसंसए) समुत्पन्नसंशयवाले, (समुप्पण्णकोऊहल्ले) समुत्पन्न कौतुहलवाले ( से भगवं गोयमे ) वे भगवान् गौतम ( उट्ठाए उट्ठेइ ) उत्थानशक्ति द्वारा अपने आसन से उठे । (उड़ाए उत्ता) उत्थानशक्ति से उठकर (जेणेव समणे भववं महावीरे) जहां श्रमण भगवान् महावीर थे । ( तेणेव उवागच्छइ ) वहाँ पहुँचे । ( उवागच्छित्ता) पहुँच कर ( समणं भगवं महावीरं ) श्रमण भगवान् महावीर को ( तिक्खुतो) तीन बार (आयाहिणपयाहिणं करेइ ) उन्होंने
दक्षिण प्रदक्षिणा की। (करिता) आदक्षिण प्रदक्षिणा करके (बंदइ नमसइ) वंदना की, नमस्कार किया । ( वंदित्ता नर्मसित्ता) वंदना नमस्कार करके (च्चासन्ने गाइदूरे) न बिलकुल पास और न अधिक दूर ही, अर्थात् उचित स्थान पर बैठकर, इस तरह, (अभिमुहे विणण पंजलिउडे ) (उप्पण्णसंसए) उत्पन्न सशयवाजा, (उत्पण्णको ऊहले. ) उत्पन्न हुतू सवाणा (संजायसड्ढे ) सौंनत श्रद्धावाणा, (संजायसंसए) सन्नतसशयवाणा, (संजायको ऊहल्ले) सन्नत हुतू
लवाणा, (समुप्पण्णसड्ढे समुत्पन्न श्रद्धावाना (समुप्पण्णसंसए) समुत्पन्न संशय वाजा, (समुपणको ऊहल्ले) समुत्पन्न हुतूहलवाजा ( से भगवं गोयमे ) ते लगवान गौतम (उट्ठाए उठेइ ). उत्थान शक्ति द्वारा पोताना आसनेथी उउया. ( उट्ठाए उट्ठित्ता.) उत्थानशक्ति वडे उट्ठीने (जेणेव समणे भगवं महावीरे) ल्यां श्रभणु लगवान महावीर ता ( तेणेव उवागच्छ इ) त्यां पहोच्या. ( उवागच्छित्ता) त्यां पडोशीने (समणं भगवं महावीरं श्रभशुभगवान महावीरनी ( तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ) तेभो श्रबुवार भादक्षिण प्रक्षिया ४री. ( करिता ) माक्षिष्य अक्षिष्या उरीने (बंदइ नमसइ) वहना उरी, नमस्कार . ( वंदित्ता नमसित्ता) वहा, नमस्र उरीने ( जच्चासन्ने नाइदूरे) बहु पासे या नहीं मने महु हर पशु नहीं, भेटले } उचित स्थाने मेसीने, (अभिमुद्दे विणएणं पंजलिउडे) भगवाननी साभे विनयपूर्व भन्ने
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧