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________________ प्रमेषपन्द्रिका टीका श० १३० १ ०३ भावभुतनमस्कारः ७९ एवं क्रमेण प्रथमशतकोद्देशानां विषयविभागः संक्षेपतः प्रकृतगाथयाऽभिहित इति।गा.१ शास्त्रारम्भे शास्त्रमध्ये शास्त्रान्ते च मङ्गलमाचरणीयमिति शिष्टपरिभाषां पुरस्कृत्य “ नमो अरिहंताणं" इत्यादिना शास्त्रादौ कृतमङ्गलोऽपि शास्त्रकारः प्रथमशतकस्याऽऽदौ विशेषतो मङ्गलं दर्शयितुमाह-" नमो सुयस्स" इत्यादि । मूलम्-नमो सुयस्स ॥ सू० ३॥ छाया-नमः श्रुताय ॥ सू० ३॥ टीका-भावलिपेनमस्कारमुक्त्वा तत्कारणभावश्रुतस्य नमस्कारं कथयति-श्रुतायभावश्रुताय नम इति श्रुताय द्वादशाङ्गी रूपात्मवचनाय नम इत्यर्थः, श्रुत-श्रुतवतोयह बहुवचनान्त पद है। इस बहुवचनान्तपदके निर्देशसे ये चलनादिक विषय दसवें उद्देशकमें दिखलाये गये हैं। ये विषय " अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति एवं खलु चलमाणे अचलिए" इत्यादि सूत्र द्वारा प्रकट किये गये हैं १०। इस क्रमसे प्रथम शतकके दस उद्देशोंका विषयविभाग संक्षेप से इस प्राकृत गाथा द्वारा कहा गया ॥ गा० १॥ शास्त्र के प्रारंभ में, शास्त्र के मध्य में और शास्त्र के अंत में मंगलाचरण करना चाहिये, ऐसी शिष्टपुरुषों की परम्परा है सो इस परम्परा को समक्ष रखकर " नमो अरिहंताणं" इत्यादि सूत्र द्वारा सूत्रकारने शास्त्र की आदि में मंगलाचरण तो किया ही है, फिर भी वे प्रथमशतक की आदि में विशेष रूप से मंगलाचरण करते हुए कहते हैं-'नमो सुयस्स"-इत्यादि। . श्रुत के लिये नमस्कार हो । श्रुत शब्द का अर्थ यहां बादशाङ्गीरूप अहत्प्रवचन है। सूत्रकार ने इसी श्रुत को नमस्कार किया है। पहिले भावलिपि को नमस्कार का कथन कर अब सूत्रकार इस भावलिपि के શથી ચલન આદિ વિષ દશમાં ઉદ્દેશકમાં બતાવવામાં આવ્યા છે. તે વિષય " अनउत्थिया गं भंते एवमाइक्खंति एवं खलु चलमाणे अचलिए" त्यहि સૂત્રદ્વારા પ્રગટ થયેલ છે(૧૦). આ કમથી પહેલા શતકના ૧૦ ઉદ્દેશોના વિષયો सक्षितमा म प्रत था द्वारा मायामां मान्य। छे. ॥गा. १॥ શાસ્ત્રના આરંભે, શાસ્ત્રની મધ્યમાં અને શાસ્ત્રને અંતે મંગલાચરણ કરવું જોઈએ. એવી શિષ્ટ પુરુષની પરમ્પરા છે. તે પરમ્પરાને ધ્યાનમાં રાખીને સૂત્રકારે " नमो अरिहंताण " त्यादि सूत्र २१ शाखनी २३मातमा भगवाय२५ तो કર્યું જ છે. છતાં પણ તેઓ પ્રથમ શતકની શરૂઆતમાં વિશેષ રૂપે મંગલાચરણ ४२ता ४ छ-" नमो सुयस्स" इत्यादि। श्रुत ने नभ२४२ डी. द्वादशi|३५ म अवयनने मडी श्रुत डेस छे. સૂત્રકારે એ શ્રતને અહીં નમસ્કાર કર્યા છે. પહેલાં ભાવલિપિને નમસ્કાર કરીને હવે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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