________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ ० १ सू० २ गा० १ दशोदेशकार्थसंग्रहगाथार्थः ७७ रूहनीया, तत्र प्रथम शकश्चलनविषयकः 'चलमाणे 'बलिए' इत्याद्यर्थनिर्णयार्थकसूत्रेण दर्शितः |१|
द्वितीयोदेशकस्य विषयो दुःखम्, “दुक्खे" इति पदेन कथितः, दुःखरूपश्च विषयः "जीवेण भंते! सयंकडे दुक्खं वेएइ " इत्यादिसूत्रण प्रतिपादितः | २ | तृतीयोदेशकस्य विषयः काङ्क्षाप्रदोषरूपः “ जीवाणं भंते! कंखामोहणिज्जे कम्मे कडे " इत्यादिसूत्रेण प्रतिपादितः | ३|
66
प्रकृतय - ( कर्मभेदा) चतुर्थोद्देशकस्य विषयः " कइ णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ" इत्यादिपश्नोत्तरैर्निर्णीतः ॥४॥
स्वामीने दशों ही उद्देशकों का अर्थ प्रकट किया है। इस तरह दूसरी जगह भी विभक्ति का संबंध कर लेना चाहिये । दश उद्देशकों में जो पहिला उद्देशक है वह चलन-विषयक है अतः यहां " चलण " पद कहा है । यह "चलमाणे चलिए" इत्यादि अर्थ का निर्णय करनेवाले सूत्र से दिखाया गया है १ । दूसरे उद्देशमें दुःखका विषय है, यह बात " दुक्खे " इस पद से कही गई है । यह दुःखरूप विषय “ जीवेणं भंते ! सयंकडं दुक्खं वेएइ " इत्यादि सूत्र से प्रतिपादित किया है २ । तृतीय उद्देश का विषय काङ्क्षाप्रदोष है अतः यहां " कखपओसे " पद कहा है । इसका कथन " जीवेणं भंते ! कंखामोहणिज्जे कम्मे कडे " इत्यादि सूत्र से किया गया है ३ । प्रकृति अर्थात् कर्म के भेद यह चतुर्थ उद्देशकका विषय है अतः यहां " पगइ शब्द कहा है । इसका निर्णय " कह णं ते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ" इत्यादि प्रश्नोत्तरों से किया गया है ४ । रत्नप्रभा आदि पृथिवियां पंचम उद्देशक का विषय है अतः यहां “
"
पुढદસે ઉદ્દેશેાના અર્થ ખતાન્યા હતા. એ જ પ્રમાણે બીજી જગ્યાએ પણ વિભક્તિના સંબધ જોડી લેવેા. દસ ઉદ્દેશકેામાં જે પહેલા ઉદ્દેશક છે તે ‘ચલન’ विषे छे. ते " चलमाणे चलिए " इत्यादि अर्थनो निर्णय उरनाशं सूत्रोथी जता ववामां आव्यो छे (१). जीन उदेशमां 'दुःख' विषे वात उरवामां भावी छे; ते वात " दुक्खे” यह द्वारा उडेवामां भावी छे. ते दुःअइय विषयनुं प्रतिपादन "जीवेणं भंते ! सयंकडं दुक्खं वेएइ" त्यिाहि सूत्रोथी उरवामां आव्यु छे(२). त्रील उद्देशान! विषय ' काङ्क्षाप्रदोष' छे, तेनुं स्थन “जीवाणं भंते! कंखामोहणिज्जे कम्मे कडे " इत्याहि सूत्री उश्वामां खाग्यु छे. (3) थोथा उद्देश उनो विषय (6 कइ भंते! कम्मपगडीओ પ્રકૃત્તિ એટલે કે કર્માંના ભેદો છે, તેને નિણૅય पण्णचाओ " इत्यादि प्रश्नोत्तरोथी पुरेसे ! छे (४). यांथभां उद्देशना विषय रत्नप्रभा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧