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________________ भावबोधिनी टीका. असुरकुमाराद्यावासनिरूपणम् कनक की बनी हुई हैं। (वियसिय सयपत्त पुडरीयवणद्धचंदचित्ता) विकसितशतपत्रपुंडरीक तिलक रत्नार्धचन्द्रचित्राः विकसितशतदलवाले कमलों के पत्तों से, तथा रत्नमय अर्ध चंद्रों से ये विमानावास विलक्षण शोभा. संपन्न हैं। (अंतो बाहिं च सहा) अन्तर्बहिश्च लक्षणाः-ये विमानावास भीतर और बाहर बिलकुल चिकने हैं। (तबणिज्ज वालुया पत्थडा) तपनीय वालका प्रस्तटा:-इनके आंगण तपनीय बालुका-सुवर्ण की रेती बिछाई हो ऐसी मालुम पडती हैं। (सुहकासा) सुखस्पर्शाः-इनका स्पर्श बडा ही सु बदायक है। (सस्सिरीयरूवा) सश्रीकरूपाः-इनका रूप सश्रीक-शोभासहित हैं। (पासाईया) प्रासादीयाः-प्रासादीय हैं, (दरिसणिज्जा) दर्शनीयाःदशीनीय हैं, (अभिरुवा) अभिरूपाः-अभिरूप हैं, (पडीरूवा) प्रतिरूपाःप्रतिरूप हैं, इन पदों का अर्थ पहिले कर दिया गया है। (केवइयाणं भंते ! वेमाणिया वासा पण्णत्ता) कियन्तः खलु भदन्त ! वैमानिकावासा: प्रज्ञप्ताः-हे भदन्त ! वैमानिक देवों के आवास कितने है? (गोयमा) हे गौतम ! (इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए) अस्थाः खलु रत्नप्रभायाः पृथिव्याः-इसरत्नप्रभा पृथिवो के (बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ) बहुसमरमणीयात् भूमिभागात-बहुसमरमणीयभूमिभाग से [उडूं] sri मनाता डोय छे. (वियसियसयपत्तपुडरीयवणद्धचदचित्ता) विक सितशतपत्रपुंडरीकतिलकरत्नार्धचन्द्रचित्रा:-- से। पायवाणां विसित કમળોથી, પુડેથી, અને રત્નમય અર્ધચન્દ્રોથી તે વિમાનાવાસ અપૂર્વ શોભાવાળા लागे छे. (अंतो बहिं च सहा) अन्तर्बहिश्चश्लक्ष्णा:-ते विमानावासे। ५२ तथा पार तदन सासा-मुलायम डाय छ ( तबणिजवालयाः पत्थडा) तपनीय वालुका प्रस्तटा:-तमना मतपत सुपा नी २०४ पाथरी डाय से सांगे छ. (महफासा) सुख पर्शा:-तमन। २५ घो। सुमहाय मागे छ. (सस्सिरीय रूवा सश्रीक रूपा:-तेनु ३५ शालायमान सागे छे. ते विमानापासे। (पसाइया) प्रासाहीय, (दरिसणिजा) हनीय, (अभिरूवा) मलि३५, मने (पडीरूवा) प्रति३५ छाय છે. આ ચાર પદોના અર્થ આગળ આપી દીધા છે. (केवइयाणं भंते ! वेमाणि यावासा पण्णत्ता ?) कियन्तः खलु भदन्त ! वैमानिकाबासाः प्रज्ञप्ता: ?- महन्त ! वैमानित वोना मावास मा छ ? (गोयमा) 3 गौतम ! (इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए) अस्याः खलु रत्न प्रभायाः पृथिव्याः-मा २त्नमा पृथ्वीना (बहुसमरमणि जाओ भूमिभागाओ) बहसमरमणीयात् भूमिभागात्-मसमरमणीय भूमि माथी (उड्) उर्ध्व શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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