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________________ भावबोधिनी टीका. द्वादशा विराधनाऽऽराधनाजनितफलनिरूपणम् ८७७ इन तीनों समयों में कैसा फल प्राप्त होता है, इस वस्तु को सूत्रकार प्रकट करते हैं शब्दार्थ-(इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं) इत्येतं द्वादशांगं गणिपिटकं-इस द्वादशांगरूप गणिपिटक की (आणाए) अज्ञया (विराहिता) विराध्य-विराधना करके (अणंता जीवा अतीतकाले) अनंता: जीवाः अतीतकाले-अनंत जीव भूतकाल में(चाउरंतसंसारकतारं) चातुरन्त ससार कान्तारं चारगति वाली संसाररूप अटवी में (अणुपरियटिस) अन्वपर्याटन्परिभ्रमण किया है, (इच्चेइयं दुवालसंगपणिडगं) इत्येतं द्वादशांगं गणिपिटकइस द्वादशांगरूप गणिपिटक की (पडुप्पण्णे काले) प्रत्युप्तन्नकाले-वर्तमानकाल में (परित्ता-जीबा) परिताः जीवाः-संख्यात जीव (आणाए विराहित्ता)अज्ञया विराध्य-आज्ञा की विराधना करके (चाउरंतसंसारकंतारं) चातुरन्त संसार कान्तारं-वारगतिरूप-संसार अटवी में (अणुपरियति) अनुपर्यटन्ति-परिभ्रमण करते हैं। (इच्चेइय दुवालसगं गणिपिडगं) इत्येतं द्वादशांगं गणिपिटकइस द्वादशांगरूप गणिपिटक की (अणागए काले)-अनागते काले-भविष्यत् काल में (अणंता जीवा) अनन्ता जीवा:-अनंत जीब (आणाए विराहिय आज्ञया विराध्य-आज्ञा की विराधना करके (चाउरंतसंसारकंतारं-चार થાય છે, એ બાબત હવે સૂત્રકાર બતાવે છે शा-(इच्चेइयं दुवालसंग गणिपिडगं) इत्येतंद्वादशांगं गणिपिटकमा शा1३५ णिपिटनी (आणाए) अज्ञया-मज्ञानी (विराहित्ता) विराध्यविराधना ४२वाथी ( अणंता जीवा अतीत काले)-अनंताः जीवाः अतीतकालेलतामा मन छोये (चाउरंतसंसारकंतारं ) चातुरन्तसंसारकान्तारंयातिवाणी ससा२ ३५ो सटवीमा (अणुपरियटिंसु) अन्वपर्याटन-परिश्रम ४यु छ, (इन्चेइयं दुवालसगं गणिपिडगं) इत्येतम् द्वादशांगं गणिपिटकं - 20 Ein३५ पिटनी (आणाए विराहित्ता) आज्ञया विराध्य-माज्ञानी विराधना धरीने (पडुप्पण्णे काले) प्रत्युप्तन्नकाले-पतमान मां (परित्ता जीवा) परीताःजीवाः-सध्यात । (चाउरंतसंसारकंतारं) चातुरन्तसंसारकान्तारं-या गति३५ सा२३पी बीमा (अणुपरियटृति) अनुपर्यटन्ति-परिन भय ४२ छे. (इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं) इत्येतं द्वादशांगं गणिपिटक मा शा॥३५ गणिपिटनी (आणाए विराहिय) आज्ञया विराध्य-माज्ञानी पिराधना ४शन (अणागए काले)अनागते काले-भविष्यमा (अणंता जीवा) अनन्ता जीवाः मनन्त चाउरंतसंसारकंतारं) चातुरन्तसंसारकांतारं શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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