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________________ भावबोंधिनी टीका. द्वादशाङ्गस्वरूपनिरूपणम् जन्मादीन्यभिधीयन्ते । 'तित्थगरगंडियाओ' तीर्थकरगण्डिकाः 'गणहरगंडियाओ' गणधरगण्डिका: 'चकहरगंडियाओ' चक्रधरगण्डिकाः-आसु गण्डिसु तीर्थकरगणधरचक्रवर्तिनां पूर्वजन्मादीन्यभिधीयन्ते । 'दसारगंडियाओ' दशाहगण्डिकाः-समुद्रविजयादि वासुदेवान्तानामत्र पूर्वजन्मादिवर्णनम् । एवमेवेतरगण्डिकास्वपि त्तत्तद्वर्णनं विज्ञेयम् । 'बलदेवगंडियानो' बलदेवगण्डिकाः 'वासुदेवगंडियाओ' वासुदेवगण्डिकाः 'हरिवंसगंडियाओ' हरिवंशगण्डिकाः,'तवोकम्मगंडियाओ' तपःकर्मगण्डिकाः 'चितंतरगंडियानो' चित्रान्तरगण्डिकाः-चित्राः-अनेकार्थाः--अन्तरे-ऋषभाजिततीर्थकृतोरन्तरे या गण्डिकास्ताश्चित्रान्तरगण्डिकाः, अयं भावः-ऋषभाजितनाथयोरन्तरे ये शेषगतिगमनरहितास्तद्वंशजा नृपास्तेषां शिवगत्यनुत्तरोपपात. प्राप्तिप्रतिपादिका गण्डिकाश्चित्रान्तरगण्डिका अभिधीयन्ते। तथा उस्सप्पिणीगंडियाओ' उत्सर्पिणीगण्डिकाः 'ओसप्पिणीगंडियाओ , अवसपिणीगण्डिकाः, तथा ' अमरनरतिरियनिरयगइगमणविविहपरियट्टणाणुयोगे' अमरनरतिर्यनिरयगतिगमनविविधपर्यटनानुयोग : अमरनरनिर्यनिरयगतिषु यद् गमनानि तत्र विविधानि यानि पर्यटनानि परिभ्रमणानि तेवाकुलकरों के पूर्वजन्म आदिक का कथन किया जाता है। तीर्थकरगडिकाइसमें तीर्थकर के पूर्वजन्म आदि का, गणधरगंडिका-इसमें गणधरों के पूर्वजन्म आदिका, चक्रधरगंडिका-इसमें चक्रवर्तियों के पूर्वजन्म आदि का, दशाहगंडिका-इसमें समुद्रविजय से लेकर बासुदेवों के पूर्वजन्म आदि का वर्णन किया गया होता है। इसी तरह से दूसरी गंडिकाओं में भी उस उस प्रकार का वर्णन किया गया जानना चाहिये। जैसे-बलदेवगंडिका, वासुदेवगंडिका, हरिवंशगंडिका, तपःकर्मगडिका, चित्रान्तरगंडिका, उत्सपिणीगंडिका, अवसर्पिणीगंडिका तथा अमर, नर, तिर्यञ्च, निरय-इन चार गतियों में जो गमन है उन गमनों में जो विविध पर्यटन हैं। ४-५ महिनु न छ. (२) तीर्थंकरगंडिका-तमा ता"शना पूनःम सानु, (३) गणधरगंडिका-तेमा धराना पूम मानिनु, (४) चक्रधरगंडिका-तमा यति याना पूनम मानि, (५) दशाहगंडिकाતેમાં સમુદ્રવિજયથી લઈને વાસુદેવના પૂર્વજન્મ આદિનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. એ જ પ્રમાણે બીજી ચંડિકાઓમાં પણ તે તે પ્રકારનાં વર્ણન કર્યા છે. જેમ કે બલદેવચંડિકા, વાસુદેવચંડિકા, હરિવંશચંડિકા તા:કર્મચંડિકા, ચિત્રાન્તર ગંડિકા, उत्सपिणी गडिl, २अवसपिणी 31, तथा अभ२ (३) न२, तियय, ना२४ी, એ ચાર ગતિથોમાં જે ગમન થાય છે અને એ ગમનમાં જે વિવિધ પર્યટન (પરિ. શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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