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________________ भावबोधिनी टीका. द्वादशाङ्गस्वरूपनिरूपणम् ८६१ 3 'छिन्नलेपणइयाइ' छिन्नच्छेद नयिकानि=छिन्नं छेदेनेच्छति यो नयः स छिन्नच्छेदनयः यथा 'धम्मोमंगलमुकिटं' इत्यादि श्लोकः सूत्रार्थतः प्रत्येकच्छेदनस्थितो न द्वितीयादिश्लोकमपेक्षते, इत्यत्र छिन्नच्छेदनयोऽस्ति येषां तानि छिन्नच्छेदन विकानि । 'ससमयसुत्तपरिवाडीए' स्वसमयसूत्र परिपाट्या, अयं भावःजिनसिद्धान्तानुसारेण ऋजुकादीनि द्वाविंशतिः सूत्राणि छिन्नच्छेदनयिकानि । तथा 'आजीवियसुत्तपरिवाडीए' आजी विकसूत्रपरिपाटया 'इथेयाई बाबीसं सुत्ता' इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि 'अच्छिन्नछेयणइयाई' अच्छिन्नच्छेदनविकानि-यो नयः सूत्रमच्छिन्नं छेदेनेच्छति सोऽच्छिन्नच्छेदनयः अत्र नये 'धम्म मंगलमुक' इत्यादि प्रथमः श्लोको द्वितीयादिश्लोकमपेक्षमाणस्तिष्ठति द्वितीयादि श्लोकऽपि प्रथमं श्लोकम् अपेक्षमाणस्तिष्ठति अर्थादन्योऽन्यसापेक्षस्तिष्ठति सोऽस्ति येषां तानि अच्छिन्नच्छेदनयिकानि । अयं भाव:- आजीवि स्वसमयसूत्र परिपाटी से अर्थात् जिनसिद्धान्तानुसार छिन्नछेदनयिक हैं। और ये ही बावीस सूत्र आजीविकसूत्र परिपाटी के अनुसार अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं। जो नय सूत्र को द्वितीयादिश्लोक की अपेक्षा रहित मानता है वह छिन्नच्छेदन है इस नय से युक्त जो सूत्र हैं वे छिन्नच्छेदनयिक सूत्र हैं। जैसे - " धम्मो मंगलक" इत्यादि सूत्र | सूत्रार्थ की अपेक्षा प्रत्येक छेदन में स्थित यह श्लोक द्वितीयादिश्लोक की अपेक्षा नहीं रखता है। तथा जो श्लोक द्वितीयादिक श्लोक की अपेक्षा रखता है वह अच्छिन्नच्छेदनयिक है। इस अच्छिन्नच्छेद नय की अपेक्षा "धम्मो मंगलमुकि" यह प्रथम श्लोक द्वितीयादिक श्लोक की और द्वितीयादिक श्लोक प्रथम - श्लोक की अपेक्षा रखता है। तात्पर्य कहने का यह है ये ऋजुकादिक बावीस સૂત્રો સ્વસમયસૂત્રપરિપાટી પ્રમાણે એટલે કે જિનસિદ્ધાંત અનુસાર છિન્નુચ્છેદનયિક છે. અને એ જ ખાવીસ સૂત્ર આજીવિકસૂત્રપરિપટી અનુસાર અચ્છિન્નુચ્છેદનયિક છે. જે નય પ્રમાણે સૂત્રને દ્વિતીય આદિ ક્ષેાકાની અપેક્ષા રહિત માનવામાં આવે છે તે નયને છિન્નચ્છેદનય કહે છે. તે નયથી યુકત જે સૂત્ર હાય છે તેમને છિન્નरोहनयिसूत्र आहे छे. प्रेम है " धम्मो मंगलमुकिहूं" हत्याहि सूत्रो छिन्नरछेનિયકા છે. સૂત્રાર્થીની અપેક્ષાએ આ પ્રત્યેક શ્લાક બીજા બ્લોકની અપેક્ષા રાખતા નથી. જે Àાક સૂત્રાની અપેક્ષાએ દ્વિતીય આદિ ક્ષેાકની અપેક્ષા રાખે છે તે अग्छिन्नस्वनयि उद्धेवाय छे. या छिन्नरछेहनयनी अपेक्षा 'धम्मो मंगल मुक्किहं' आ पड़े। सो मील साहि होउनी भने द्वितीयाहि सो पा ાકની અપેક્ષા રાખે છે. કહેવાનુ તાત્પ એ છે કે જનુકાદિક ખાવીસ સૂત્ર શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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