SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 865
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४६ समवायाङ्गसूत्रे इसमें ज्ञान, तप और संयमयोग ये सब शुभ फल वाले और अप्रशस्त. प्रमाद आदिक अशुभफलवाले होते हैं इस विषय का वर्णन है११ (पाणाउपुच्च) प्राणायुपूर्व-इसमें आयु और प्राणों का भेद सहित वर्णन है१२।(किरियाविसालं) क्रियाविशालं-इसमें कायिकी आदि क्रियाओं का, संयमक्रियाओं का और छेदक्रियाओं का विस्तृत वर्णन है१३। (लोगबिंदुसार)लोकबिन्दुसारं-अक्षर की बिन्दु की तरह यह इस लोक में अथवा श्रुतलोक में सर्वोत्तम है१४ तथासमस्त अक्षरों के सन्निपात संबंध से यह प्रतिष्ठित-युक्त है। उप्पाय(पुव्वस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता) उत्पादपूर्वस्य खलु दश वस्तूनि प्रज्ञप्तानिउत्पादपूर्व में दश वस्तुएँ हैं। (चतारि चूलियावत्थू पण्णता) चत्वारि चूलिका वस्तूनि प्रज्ञप्तानि-तथा चूलिका वस्तुएँ चार हैं। (अग्गेणियस्स णं पुवस्सचोदसवत्थू पण्णता) अग्रणीयस्य खलु पूर्वस्य चतुर्दशवस्तूनि प्रज्ञप्तानिअग्रेणीय पूर्व की चौदह वस्तुएँ हैं। (बारस चूलिया वत्थू पण्णत्ता) द्वादश चूलिका वस्तूनि प्रज्ञप्तानि-बारह चूलिका वस्तुएँ हैं। (वीरियप्पवायस्सणं पुव्वस्स अट्टवत्थू पण्णत्ता) वीर्यप्रवादस्य खलु पूर्वस्य अष्ट वस्तनि प्रज्ञप्तानि वोर्यप्रवादपूर्व की आठवस्तुए हैं। (अट्ट चूलिया वत्थू पण्णत्ता) अष्टचूलिका वस्तूनि प्रज्ञप्तानि-आठ ही चूलिका वस्तुएँ हैं। (अस्थिणस्थिવિષય સમજાવ્યું છે કે જ્ઞાન, તપ અને સંયમયેગ, એ શુભફળવાળા છે પણ मप्रशस्त प्रभाह माहि मशुम वाणां छे, (पागाउपुर्व) प्राणायुपूर्व-तमा आयु मने प्राणेनु ४ प न यु छे. (किरियाविसाल) क्रियाविशालं-तेमा કાયિકી આદિકિયાએ નું, સંયમક્રિયાઓનું, અને છંદયિાઓનું વિસ્તૃત વર્ણન છે. (लोगबिंदुसारं) लोकबिन्दुसारं-अक्षरना मिन्दुनीम ते भा अथवा શ્રતલોકમાં સર્વોત્તમ છે તથા સમસ્ત અક્ષરોના સન્નિપાત સંબંધથી તે યુક્ત છે. (उप्पायपुवस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता)उत्पादपूर्वस्य खलु दशवस्तूनि प्रज्ञप्तानिSत्पापूर्वमा इस पस्तुमा छ. (चत्तारि चूलियावत्थूपण्णत्ता) चत्वारिचूलिकावस्तूनि प्रज्ञप्तानि तथा यार यूलि १२तुम छ (अग्गेणियस्सणं पुवस्स चोदसवत्थूपण्णत्ता)अग्रेणीयस्य खलु पूर्वस्य चतुर्दश वस्तूनि प्रज्ञप्तानि-मणीयपूर्व ना यो वस्तुम।छ, अने(बारसचूलिया वत्थूपण्णत्ता) द्वादश चूलिका वस्तूनि प्रज्ञप्तानिमा२ यूनि।मे। वस्तुमा छे. (वीरिपप्पवायस्स णं पुचस्स अट्ठबत्थूपण्णत्ता) वीर्यप्रवादस्य खलु पूर्वस्य अष्टवस्तूनि प्रज्ञप्तानि-बीयप्रवाहपूनी 2418 वस्तुमे। छ, भने (अचूलिया वत्थूपण्णत्ता)अष्टचूलिकावस्तुनिमज्ञप्तानि--18 ०१ यूलिया १२तु छ. (अत्थिणत्थिप्पवायस्स णं पुवस्स अट्ठारस्सवत्थू पण्णत्ता) मस्ति શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy