________________
८४४
समवायाङ्गसूत्रे आजीविकसूत्र-परिपाटया-आजीविकसूत्र परिपाटी के अनुसार (अच्छिण्ण छेयणइयाई) अच्छिन्नच्छेदनयिकानि-अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं। (इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई)इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि-तथा ये बावीस स्त्र(तेरासियसुत्तपरिवाडीए)त्रैराशिकसूत्रपरिपाटया त्रैरायिक सूत्रपरिहाटी के अनुसार(तिक गइयाइ) त्रिक नपिकानि-त्रिक नयिक हैं। (इच्चेयाई बावीसं सुत्ताइ) इत्येतानि द्वाविशतिः सूत्राणि-तथा ये बावीस सूत्र(ससमय सुत्तपरिवाडीए) स्वसमयमूत्रपरिपाटया-जिन सिद्धान्तसूत्रपरिपाटी के अनुसार (चउक्कणइयाइं) चतुष्क नयिकानि-संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द इन चार नयों से युक्त हैं। (एवामेव) एवमेव-उक्त प्रकार से (सपुवावरेणं) सपूर्वापरेण-पूरापर के जोडने से (अट्ठासीइ सुत्ताई भवंतीति मक्खायाई) अष्टाशीतिः सूत्राणि भवन्ति इति आख्यातानि-अठासी भेद हो जाते हैं ऐसा कहा है, (से तं सुत्ताइं) तान्येतानि सूत्राणि-इस तरह सूत्र का यह स्वरूप है। (से किं तं पुचगयं) अथ किं तत् पूर्वगतं-अब दृष्टिवाद का जो तीसरा भेद पूर्वगत है उसके स्वरूप के विषय में शिष्य पूछता है कि हे भदंत ! पूर्वगत का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(पुव्वगयं चउद्दसविहं पणत्तं) पूर्वगतं-चतुर्दशविधं प्रज्ञप्तम्-पूर्वगत १४ प्रकार का है अर्थात् दृष्टिवाद के तीसरे भेद में चौदह आजीविकसूत्रपरिपाटया-मावि सूत्र परिपाटी अनुसा२ (अच्छिण्णछेयणइयाई) अच्छिन्नच्छेदनयिकानि-मनछेनयि छ, (इच्चेयाई बावीसं मुताई) इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि-तथा मे मावीस सूत्र (तेरासिया मुत्तपरिवाडीए) त्रैराशिकसूत्रपरिपाटया-३२४सूत्र ५.२५८ अनुसार (तिकणइयाई) त्रिकनयिकानि-त्रिनय छ (इच्चेयाई बावीसं सुत्ताई) इत्येतानि द्वाविंशतिः सूत्राणि-तथा ते मापीस सूत्र (ससमयसुत्तपरिवाडीए) स्वसमयसूत्रपरिपाटया-सिद्धान्त परिपाटी अनुसार (च उक्कणइयाई) चतुकनयिकानि-सड, व्यवहा२, सूत्र भने २४ मे या२ नोवाम छे. (एवामेव) एवमेव-५२।४ २ (सपुवावरेणं) सपूर्वापरेण-पूर्वा५२ने लेगा ४२वाथी ( अट्ठासीइसत्ताई भवंतीतिमक्खायाई) अष्टाशीतिः सूत्राणि भवन्ति इति आख्यातानि-८८ २४यासी मे ॥4 छे. सेम ४९ छे. (से तं सुत्ताई) तान्येतानि सूत्राणि-सूत्रनु ०५२।४त ४।२नु २१३५ छे. (से किं तं पुव्वगयं) अथ किं तत् पूर्वगतं ?-७वे दृष्टियानो ने यूनत નામને જે ભેદ છે તેનું સ્વરૂપ જાણવાને માટે શિષ્ય પૂછે છે- હે ભદન્ત ! પૂર્વગतनु २१३५ 3 छ ? उत्त२-(पुव्वगयं चउद्दसविहं पण्णत्तं)पूर्वगतं चतुर्दशविधं प्रज्ञप्तम्-पूतना यौह प्रा२ छे मेटदेष्टियाना त्रीला महना १४ पूछे.
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર