SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 837
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायाङ्गसूत्रे === बालं) जरामरणयोनिसंक्षुभितचक्रवालं जरा मरण एवं चौरासी ८४ लाख योनियां ही इस संसार सागर में चंचल आवर्त्त हैं। (सोलसकसायसावयषयंडचंड) षोडशकषायश्वापदप्रकाण्डचण्डम् - सोलह क्रोधमान आदि कषाये ही यहां अतिशय भयङ्कर मकरग्राहादि के स्थानापन्न हैं । (अणाइयं) अनादिकम्आदि रहित (अणवदग्गं) अनवदग्रं - अनंत, ऐसे संसारसागर को भव्यजीव अल्य करते हैं। उसका वर्णन इसमें हैं। (जह य) यथा च- जिस प्रकार सेवे भव्य जीव (सुरगणेसु) सुरगणेपु - देवों में देवायु- वैमानिक देवों की ( आउगं) आयुष्कं - आयु का ( णिबंधति) निबध्नन्ति - बंध करते हैं, (जह य) यथा चजिस प्रकार से (अणोवमाई ) अनुषमानि-उत्कृष्ट (सुरगणविमाण - सोवखणि) सुरगणविमानसौख्यानि - सुरगणविमानों के सुखों को (अणुभवंति ) अनुभवन्तिभोगते हैं, (तओय) ततश्च वहां से सुरगण विमान संबंधी सुखों को भोगने के बाद ( कालंतरे) कालान्तरे - कालान्तर में (चुयाणं) च्युतानां देवलोक से चव कर ( इहेव ) इस तिर्यग लोक में ही (नरलोगमागयाणं) नरलोकभागतानांमनुष्य भव लेकर जिस प्रकार ( आउवपुवण्णरूवजाइकुल जम्म आरोग्गबुद्धिमेहाविसेसा) आयुर्वपूर्वर्णरूप जातिकुल जन्म |रोग्यबुद्धिमेधाविशेषाः - आयु, शरीर, वर्ण, रूप - शारीरिक सौन्दर्य, उत्तम जाति, उत्तमकुल, उत्तमजन्म, आरोग्य, औत्पपादिक बुद्धि, अपूर्वश्रुत ग्रहण करने की शक्ति रूप मेघा, जनेला छे. (जरामरणजोणि संखुभियचकवालं) जरामरणयोनिसंक्षुभितचक्रवालंજરા, મરણ અને ૮૪ ચાર્યાસી લાખ યાનિયા જ આ સંસાર સાગરમાં ચંચળ आवर्त (मणो) छे. (सोलसकसायसावयपयंडचंडं) षोडशकषायश्वापदप्रका ण्डचण्डम्-डोध, भान आदि से उषायो ४ मा संसार सागरमा अतिशय लय ५२ भगर ग्राडु आदि समान है. (अणाइयं) अनादिकं हि रहित (अणवदग्गं) अनवदग्रं - अने अनंत सेवा संसारसागरने मुरनारा लव्यलवोनु वार्जुन संगमां छे. (जह य सुरगणेसु आउगंणिबंधति) यथा च सुरगणेषु आयुष्कं निबध्नाति - तेथे ठेवी शते देवयोनिमा वैमानि देवाना आयुष्यनो अघ सांधे छे, अने ( जह य ) यथा च- देवी रीते (अणोवमाई) अनुपमानि - उत्सृष्ट (सुरगणविमाणसोक्खाणि अणुभवंति ) सुरगणबिमानसौख्यानि अनुभवंति - सुरगण विमानानुं सुण लोगवे छे, अने (तओ य) ततश्च - त्यांथी सुरगए विभानानुं सुम लोगव्या पछी (इहेव) मा तिर्यग सोड मां ने रीते (नरलोगजागयाणं) नरलोकमागतानां - मनुष्यलभ बन्स सहने ने रीते (आउवपुवण्णरुवमाइकुलजज्म आरोग्याबुद्धि मेहाविसेसा) आयुर्वपूर्वर्णरूपजातिकुलजन्मारोग्यबुद्धि मे धाविशेषाः- आयुष्य, शरीर, वर्षा, शारीरिए सौंदर्य, उत्तम अति उत्तम ઉત્તમજન્મ, આરોગ્ય, ઔત્પત્તિકી આદિ બુદ્ધિ, અપૂર્વ શ્રુતગ્રહણ કરવાની શકિતરૂપ ८१८ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy