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भावबोधिनी टीका. नवमाजस्वरूपनिरूपणम्
७८९ यथा च अन्तक्रियां करिष्यन्ति-जिस प्रकार अन्तक्रिया को करेंगे अर्थात् मोक्ष में जावेंगे उस प्रकार से विषय का प्रतिपादन इस अंग में कियां गया है, (एए अण्णे य एवमाई अस्था वित्थरेण)एते अन्ये च एवमादयअर्थाः विस्तरेण-ये समस्त पूर्वोक्त विषय और इन्हीं विषयों जैसे और भी दूसरे विषय इस अंग में विस्तार पूर्वक कहे गये हैं। (अणुत्तरोववा. इयदसासु ण) अनुत्तरोपपातिकदशासु खल-इस अनुत्तरोपपातिक दशा में (परित्ता वायणा) परीता: वाचना:-संख्यात वाचना हैं। (संखेजा अणुओ. गदारो) संख्येयानि अनुयोगद्राराणि-संख्यात अनुयोगद्वार हैं। (संखेज्जाओ जाव संगणीओ) यावत् संख्येया संग्रहण्यः-यावत् संख्यात संग्रहणियां हैं। (से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे) ताः खलु अङ्गार्थतया नवममङ्गम्-अंगों की अपेक्षा यह नौवां अंग है (एगे सुयक्खंधे) एकः श्रुत. स्कन्धः-इसमें एक श्रुतस्कंध है (दस अज्झयणा) दश अध्ययनानि-दश अध्ययन हैं । (तिन्नि वग्गा) यो वर्गाः-तीन वर्ग हैं । (दस उद्देसनकाला) दश उद्देशनकालाः-दश उद्देशनकाल हैं। (दस समुद्दे. सणकाला) दश समुद्देशनकाला:-दश ही समुद्देशन काल हैं (संखेजाइ पयसस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता) संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण प्रज्ञप्तानिच अन्तक्रियं--3वी शते मोक्षम शे, ते विषयतु सा भी प्रतिपान ४यु छ. ( ए ए अण्णेय एक्माई अथा वित्थरेण ) एते अन्ये च एवमादय अर्थाः विस्तरेण-पूर्वरित या विषयानुसने से 4t२. अन्य विषयानु पण विस्तारथी - Ani ४थन ४यु छे. (अणुत्तरोववाइयदसासु णं ) अनुत्तरोपपातिकदशासु खलु-मा अनुत्त५पाति ६inम (परित्ता वायणा) परीताः वाचनाः सयात वायनासो छ, (संखेज्जा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि सध्यात मनु यो हार छ, (संखेज्जाओ जाव संगहणीओ) यावत् संख्येया संग्रहण्या-यावत् ५६थी संन्यात सडी छे, त्या सुधीनi पहने। समावेश थयेटी समपान छ. (से गं अंगट्टयाए नवमे अंगे) ताः खलु अङ्गार्थतया नवममङ्गम्-मानी अपेक्षाते नभु मन छे. (एगे सुयक्खंधे) एकः श्रुतस्कन्धः-तेमा मे श्रुत. २४५ छ, (दस अज्झयणा) दश अध्ययनानि-६स मध्ययन। छ, (तिन्निवग्गा) त्रयो वर्गाः-त्रए छ. (दसउद्देसनकाला) दशउद्देशनकाला:-इस देशन ४॥ छ. (दससमुद्देसणकाला) दशसमुद्देशनकाला:-६स समुदेशन छे. (संखेजाई पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता) संख्येयानि पदसहस्राणि पदा
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર