________________
७८४
समवायाङ्गसूत्रे दस अज्झयणा, तिन्निवग्गा, दस उद्देसणकालो, संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ता । संखेन्जाणि अक्खराणि जाव चरणकरणपरूवणा आविजइ । से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ॥सू.१८२॥
अब सूत्रकार नौवें अंग का स्वरूप कहते हैं
शब्दार्थ-(से कि तं अणुत्तरोववाइयदसाओ) अर्थ कास्ता अनुत्तरोपपातिकदशा ? हे भदन्त ! अनुत्तरोपपातिक दशा का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(अणुत्तरोववाइयदसासु णं) अनुत्तरोपपातिक दशासु खलु-अनुत्तरोपपातिक मुनियों के (नगराइं) नगराणि-नगर, (उज्जाणाई) उद्यानानिउद्यान, [चेइयाइं) चैत्यानि-चैत्य, (वणसंडाई) वनषण्डाः -वनखंड, (रायाणो) राजानः-राजा (अम्मापियरो) अम्बापितरौ-मातापिता (समोसरणाई-समवसरण (धम्मायरिया) धर्माचार्या:-धर्माचार्य, (धम्मकहाओ) धर्मकथाएँ. (इहलोगपरलोगइडिविसेसा) इहलोक परलोक ऋद्धिविशेषाः-इहलोक और परलोक संबंधी ऋदिविशेष, (भोगपरिचाया) भोगपरित्यागाः-भोगपरित्याग, (पवज्जाओ) प्रव्रज्या:-प्रव्रज्या, (सुयपरिग्गहा) श्रुतपरिग्रहा:-श्रुताध्ययन (तवोवहाणाई) तप उपधानानि-तप उपधान-(उग्रतपस्या) (परियाया) पर्यायाः-पर्याय-(प्रव्रज्या) दीक्षा (पडिमाओ) प्रतिमाः-प्रतिमाएँ (संलेहणाओ)संलेखनाः-संलेखना,(भत्तपाणपचक्खाणाई) भक्तपानपत्याख्यानानि
હવે સૂત્રકાર નવમાં અંગનું સ્વરૂપ બતાવે છે– शर्थ-(से किं तं अणुत्तरोववाइय दसाओ?)कथ कास्ता अनुत्तरोपपातिक दशाः?-डे महन्त ! मनुत्त५पाति: ६शानुयु २१३५ छे ? उत्तर-अणुत्तरोववाइय दसामु ण) अनुत्तरोपपातिकदशासु खलु-मनुत्त५पाति:शा सूत्रमा अनुत्तरी५५ति भुनियाना (नगराई) नगराणि-नगरे।, (उज्झाणाई) उद्यानानिGधाना, (चेइयाइं) चैत्यानि-यत्या, (वणसंडाई) वनषण्डाः -५-3, (रायाणो) राजानः-२०मा, (अम्मापियरो) अम्बापितरौ-मातापिता, (समोसरणाइं) समवसाणानि-समवस।, (धम्मायरिया) धर्माचार्याः-मायायो, (धम्मकहाओ) धर्मकथा-मया, (इहलोगपरलोगइडिविसेसा) इहलोक परलोकऋद्धिविशेषाः-या अने ५२सोनी विशिष्ट ऋद्धियो, भोगपरिचया (भोग परित्यागाः-लोग परित्याग, (पवजाओ) प्रव्रज्या:-प्रया, सुयपरिग्गहा] श्रुतपरिग्रहाः-श्रुताध्ययन, (तवोवहाणाई) तपोपधानानि-त५५थान तपस्या. (परियाया) पर्यायाः-पर्याय।-(प्रव्रज्या) lal, (पडिमाओ) प्रतिमाः-प्रतिमाया, (संलेहणाओ) संलेखना:-सेले मनायो, [भत्तपाणपच्चक्खाणाई]भक्तपान प्रत्या
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર