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समवायांङ्गसूत्रे
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घविप्पमुक्का उति जह अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं । एए अन्ने य एवमाई अस्था वित्थरेण य । उवासयदसासु णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा जाव संखेजाओ संगहणीओ। से णं अंगट्रयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ताई। संखेजाइं अक्खराइं जाव एवं चरणकरणपरूवणो आघविजइ । से तं उवासगदसाओ ॥सू. १८०॥
अब सूत्रकार सातवें उपासकदशाङ्ग का स्वरूप कहते हैटोकार्थ--'से कि तं उवासकदसाओ' अथ का सा उपासकदशाःहे भदन्त ! उपासकदशांग का क्या स्वरूप है ? उत्तर-उवासगसासु णं) उपासकदशासु खलु-उपासक नाम श्रावक का है उनकी उपासकस्वबोधक दशा-अवस्थाओं का वर्णन इसमें हैं (उवासयाणं णगराइं) उपासकानां नगराणि-श्रावकों के नगरों का, (उजाणाई) उद्यानानि-उद्यानों का, (चेइयाई) चैत्यानि-चैत्यों व्यन्तरायतनों का,[वणखंडावनषण्डानि-वनखण्डों का,(रायाणो) राजानः-राजाओं का, (अम्मापियरो) अम्बापितरौ-मातापिता का, (समोसरणाई) समवसरणानि-समवसरणों का, (धम्मायारिया) धर्माचार्या:-धर्माचार्यों का, [धम्मकहाओ] धर्मकथाः-धर्मकथाओं का, इह. लोइयपरलोइयइडिविसेसा) ऐहलौकिकपारलौकिकऋद्धिविशेषाः-ऐहलौकिक पारलौकिकऋद्धिविशेषों का, इसमें वर्णन है। (उवासयाणं) उपासकानां
હવે સૂત્રકાર “ઉપાસંકદશાંગ’ નામના સાતમાં અંગનું સ્વરૂપ બતાવે છે – टी--(से कि तं उवासकदसाओ ?) अथ का सा उपासकदशा:?है महन्त ! उपासशांगनु २१३५ छ ? उत्तर--(उवासगदसासु णं)उपासकदशासु खलु-श्रा१४ने पास ४९ छे. तेमनी पासवाध अ१यायानु वर्णन मा मगमा ४२सयु छे. (उवासयाणं णगराई)उपासकानाम् नगराणिउपासना ननु, (उजाणाई) उद्यानानि-Gधानानु, (चेइयाइं) चैत्यानिथैत्यानु (वणसंडा) वनषण्डानि-नमनु, [रायाणो] राजानः-रामानु (अम्मापियरो) अम्बापितरौ-मातापितानु, समोसरणा] समवसरणानिसमवसरणानु, [धम्मायरिया] धर्माचार्या:-यायायानु, [धम्मकहाओ] धर्मकथा:-- थामेनु, (इहलोइय परलोइय इविविसेसा) ऐहलौकिक पारलौकिक ऋद्धिविशेषाः-मने मा भने ५२सोनी पास ऋद्धियोनु ।
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર