SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 766
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४७ भावबोधिनी टीका. षष्ठाइस्वरूपनिरूपणम् णाई उद्यानानि-परिधृतवस्त्राभरणाः गृहीतासनाहारा जना यत्र क्रीडार्थमुद्यान्ति-गच्छन्ति तानि उद्यानानि२, 'चेइयाई' चैत्यानि-पइऋतुपुष्पफलसमृद्धानि वनानि३, 'वणसंडा' वनषण्डा: एकजातीयवृक्षयुक्तान्युद्यानानि, नानाजातीयत. रुसंपन्नानि वा४, 'रायाणो' राजानः५, 'अम्मापियरो' मातापितरौ६, 'समोसरणाई समवसरणानि७, 'धम्मायरिया' धर्माचार्या:८, 'धम्मकहाओ' धर्मकथा:९, 'इहलोइयपरलोइयइडिविसेसा' ऐहलौकिकपारलौकिकऋद्धिविशेषाः ऐहलौकिक पारलौकिकसंपदः१०, 'भोगपरिच्चाया' भोगपरित्यागा:११, 'पव्वज्जाओ' प्रव्रज्याः १२, 'सुयपरिग्गहा' श्रुतपरिग्रहा:-श्रुताध्ययनानि१३, 'तवोवहाणाई' तप उपधानानि उत्कृष्टतपः-करणानि १४, 'परियाया' पर्यायाः नवीनप्रव्रज्यामदाना. दिलक्षणाः, पूर्वावस्थात्यागेनावस्थान्तरगमनलक्षणा वा१५, 'संलेहणाओ' संलेखनाः-शरीरकषायादि शोषणलक्षणाः१६, 'भत्तपच्चक्रवाणाई' भक्त प्रत्याख्याहरणरूप से उपन्यस्त हुए मेधकुमार आदिकों के नगरों का१, उद्यानों का-जहां वस्त्र आभूषणपहिरकर लोग आसन और खाने की सामग्री ले२ कर क्रीडा करने के लिये जाते हैं ऐसे स्थानों का२, चैत्यों काषड् ऋतुओं के पुष्पफलों से समृद्ध बने हुए वनो का३, वनषंडों काएक जाति के अथवा नाना जाति के वृक्षों से युक्त उद्यानों का४, राजाओं का५, मातापिता का६, समवसरणों का७, धर्माचार्यों का८, धर्मकथात्रों का९, ऐहलौकिक एवं पारलौकिक ऋद्धियों का-संपत्तियों का१०, भोगपरित्याग का११, प्रव्रज्या का१२, श्रुतपरिग्रह का-श्रुताध्ययन १३, उत्कृष्टतपस्याओं को आचारित करने का १४, नवीनप्रव्रज्या प्रदानादिरूप अथवा पूर्वावस्था के परित्याग से दूसरी अवस्था के धारण करनेरूप पर्यायों का१५, शरीर और कषाय आदि को शोषण करने रूप संलेखना का१६, भक्तप्रत्याख्यान-मरणविशेष का१७, पादपोपगमनઆ જ્ઞાતાધર્મકથામાં ઉદાહરણ દ્વારા (૧) મેઘકુમાર આદિના નગરનું, (૨) ઉદ્યાનનું–જયાં લોકો વસ્ત્ર તથા આભૂષણો પહેરીને આસન તથા ખાવાની ચીજો લઈને કીડા કરવાને માટે જાય છે એવાં સ્થાનેનું, (૩) ચિત્યનું-છ ઋતુઓનાં પુષ્પ અને ફળોથી ભરપૂર વનનું, (૪) વનણંડેનું–એક જ જાતનાં અથવા વિવિધ तनi वृक्षापाणां नानु, (५) समानु, (6) भातापितानु, (७)समवसरणानु', (८) पायानु, () ५४था सानु, (१०) मासी मने ५२सोनी ऋद्धियोनु, (११) ले परित्यागनु, (१२) प्रन्यानु, (१३) श्रुतपरियनु-श्रुताध्ययन, (१४) ઉત્કૃષ્ટ તપસ્યાઓના આચરણનું, (૧૫) પર્યાનું-નવીન પ્રત્રજ્યા પ્રદાન આદિરૂપ અથવા પૂર્વાવસ્થાનો ત્યાગ કરીને બીજી અવસ્થા ધારણ કરવા રૂપ પર્યાયનું, (૧૬) શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy