SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 723
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०४ समवायानसूत्रे -ज्योतिः संचाला:-ज्योतिषां-नारकादीनां संचाला:-संचरणानि च निरूप्यन्त । "तथा 'एकविहवत्तव्वयं' एकविधवक्तव्यता, 'दविहजावदसविहवत्तव्ययं" द्विविधबक्तव्यता यावद् दशविधवक्तव्यता च स्थाप्यते । तथा 'जीवाणं' जीवानां 'पोग्गलाणं' पुद्गलानां च तथा 'लोकट्ठाईणं' लोकस्थायिनां-धर्माधर्मास्तिका. यादीनां 'परूपणयं' प्ररूपणा-प्रज्ञापना, 'आपविजई' आख्यायते । 'ठाणस्स णं' स्थानस्य खलु परीता:संख्याता वाचनाः, संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः प्रतिपत्तयः, संख्येयाः वेष्टकाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येया नियुक्तयः, संख्येयाः 'संगहणीओ' संग्रहण्यः। ‘से णं' तत् खलु 'अंगठ्याए' अङ्गार्थतया सब पदार्थों की प्ररूपणा स्थानाङ्ग में की जाती है। (एकविहवत्तव्वयं) एकविधवक्तव्यता-एक प्रकार की वक्तव्यता, (दविहं जाव दसविह वत्तव्वयं) द्विविध यावत् दशविधवक्तव्यता-दो स्थान से लेकर यावत् दश स्थानतक की वत्तव्यता की जाती है। (जीवाणं पोग्गलाणं य) जीवानां पुद्गलानां च- जीवो की, पुद्गलों की (लोगट्ठाईणं च) लोकस्थायिनां च-और लोकस्थायी धर्मास्तिकायादिक द्रव्यों की (परूवणा-आधविजइ) प्ररूपणा आखायते-प्ररूपणा की जाती है। ठाणस्स णं परित्ता वायणाः स्थानस्य खलु परिता वांचनाः स्थानाङ्ग में संख्यात वाचनाये हैं। (संखेजा अणुओगदारा)संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-संख्यात अनुयोग द्वार हैं, (संखेजाओ पडिवत्तीओ संख्येयाः प्रतिपत्तयः-संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं, (संखेजा वेढा) संख्येयाः वेष्टकाः संख्यातवेष्टक हैं,(संखेजा सिलोगा)संख्येयाःश्लोका -संख्यातश्लोक हैं, (संखेजाओ-निज्जुत्तोओ) संख्याता नियुक्तयः-संख्यात नियुक्तियां हैं, [संखेजाओ संगहणीओ] सख्येयाः संग्रहण्यः-संख्यात संग्रहणियां हैं। (से गं ४२वाम मावेल .(एकविह वक्तव्व) विधातव्यता- प्रारनी १४तव्यता, (दुविह जाव दसविहवत्तव्वयं) मेथी सन इस स्थान सुधीनी १४तव्यता ४२वामा आवे छे. (जीवा गं पोग्गलाणं च) जीवानां पदलानां च-नीत! (लोगट्ठाईणंच लोकस्थायिनां च-मने स्थायी स्तिया द्रव्यानी (परूवणा आघविज्जइ) प्ररूपणा आख्यायन्ते-५३५९॥ ४२वामा भावी छे. (ठाणस्सणं परिता वायणा) स्थानस्य खलु परीता वाचना:-स्थानमा सभ्यात वायना। छ, संखेज्जा अणुओगदाराः संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-सध्यात मनुयाग द्वार छे, (संखेज्जाओ पडिवत्तियो) संख्येयाः प्रतिपत्तयः-सध्यात प्रतिपत्तिया छ, (संखेज्जा वेढा) संख्येयाः वेष्टकाः-सध्यात वेष्ट छ, (संखेज्जा सिलोगा) संख्येयाः-श्लोकाः सभ्यात व छ, (संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ) संख्याता नियुक्तयः-सध्यात निरयुतो छ, मसे संखेजाओ संगहणीओ) શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy