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समवायाङ्गसूत्रे प्रज्ञाप्यत 'प्ररूविजई' प्ररूप्यत 'दंसिज्जइ' दश्यते, 'निदसिज्जइ' निदश्यते । 'उवदंसिज्जइ' उपदर्यते । एषामर्थोऽत्रैवसूत्रे कथितः। आचारागस्वरूपमुक्त्वाऽऽचार्यः शिष्यमाह-'से तं आयारे' स एष आचारः-हे जम्बूः! यत्वयाऽऽचाराङ्गभावः पृष्टः स ज्ञानाचारादिलक्षण आचारोऽयमनन्तरोक्तो विज्ञेयः।।सू. १७५।। आख्यायते-सामान्यविशेषरूप से की जाती है, (पण्णविजइ) प्रज्ञाप्यतेवचनपर्यायसे अथवा नामादिभेद से की जाती है, (प्ररूविजइ) प्ररूप्यतेस्वरूप प्रदर्शनपूर्वक की जाती है (दंसिजइ) दयते-उपमान, उपमेय भाव आदि से की जाती है, (निदंसिज्जइ) निदर्यते-दूसरे जीवों की दया के लिये तथा भव्यजीवों के कल्याण के लिये बार २ की जाती है. (उवदंसिजइ) उपदर्यते-उपनय और निगमन द्वारा तथा सकलनय के अभिप्राय के अनुसार शिष्यों की बुद्धि में निस्सन्देह स्थापित की जाती है । इस प्रकार आचारांग का स्वरूप कहकर सूत्रकार शिष्य को कहते हैं-(से तं आयारे) स एष आचारः-हे जंबू ! तुमने जो आचारांग का भाव पूछा था सो वह ज्ञानाचारादिरूप जानना चाहिये।। ___अब सूत्रकार इन द्वादश अंगो में जो प्रथम आचारांग है प्रश्नोत्तरपूर्वक उसके स्वरूप का कथन करते हैं-'से कितं आयारे?' इत्यादि।
टीकार्थ-गणिपिटकरूप जो द्वादशांग है उसका प्रथम अंग आचारांग है-यह बात अभी अभी कही गई है-अतः शिष्य प्रश्न करता है कि आख्यायते-सामान्य तथा विशेष३५थी ४२१ामा मावी छ. (पण्णविजइ)प्रज्ञाप्यतेक्यपर्यायथा अथवा ना माहिना लेहथी ४२वामा मावा , (परूविजइ) प्ररूप्यते२५३५ प्रशन पू ४ ४२वामा मावी छ, (दंसिजइ) दर्श्यते-6मान उपमेय लाप माहिया ४२वाम मावी छे, (निदंसिज्जइ) निदर्श्यते-24न्य वानी याने भाटे तथा १०५ याना ४८याने भाटे पारंवा२ ४२वाम मावी छ, (उवदंसिज्जइ) उपदर्यते-उपनय मने निशमन द्वारा तथा सॐ नयना मलिप्राय अनुसार શિષ્યની બુદ્ધિમાં નિસંદેહ સ્થાપિત કરવામાં આવી છેઆ પ્રમાણે આચારાંગનું ११३५ मतादीन सूत्र.२ शिष्यने ४ -(से तं आयारे)स एष आचार:જંબૂ ! તમે આચારાંગ સૂત્રનો જે ભાવ પૂછયો હતો તે ઉપરેત જ્ઞાનાચાર આદિરૂપ સમજ.
ટીકાથ–હવે સૂત્રકાર દ્વાદશ અંગોમાંના પહેલા આચારાંગ નામના અંગનું प्रश्नोत्तरपूर्व २१३५ शारे छे-से कि तं आयारे" इत्यादि।
ગણિપિટકરૂપ દ્વાદશ (બાર) અંગમાંનું પહેલું અંગ આચારાંગ છે, એ વાત આગળ કહેવામાં આવી ગઈ છે. શિષ્ય પૂછે છે કે તે આચારાંગ કેવું છે? એજ પ્રશ્ન
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર