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________________ भावबोधिनी टीका. आचारार्डस्वरूपनिरूपणम् ६५७ उपासक दशाः 'अंतगडदसाओ' अन्तकृ दिशाः 'अणुत्तरोववाइयदसाओ' अनुत्त रोपपातिकदशाः, 'पण्हावागरणं' प्रश्नव्याकरणम् 'विवागासुए विपाकश्रुतम् 'दिडिवाए' दृष्टिवाद इति ।। सू० १७४ ।। द्वादशसु अङ्गेषु प्रथममङ्गमाचाराङ्गम्, तत्स्वरूपं प्रश्नोत्तरपूर्वक दर्शयति-मूलम् - से कि तं आयारे ? आयारे णं समणाणं णिग्गंथाणं आयारगोयर- विणयवेणइयद्वाण-गमण - चंक्रमण - पमाण - जोगजुंजण भासासमितिगुत्ती - सेज्जोवहि- भत्तपाण उग्गम उपायण एसणाविसोहि सुद्धासुद्धग्गहणवय नियमतवोवहाणसुप्पसत्थमाहिज्जइ । से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - णाणायारे, दंसणायारे, चरितायारे, तवायारे वीरियायारे । आयारस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुयोगद्वारा, संखेज्जाओ पडिवत्तोओ, संखेजावेढा, सरखेज्जा सिलोग्गा, संखेज्जाओ निजत्तीओ। से णं अंगट्याए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइं उद्देसणकाला, पंचासीइं समुद्दे सणकाला, अट्ठारसपदसहस्साइं पदग्गेणं, संखेजा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा सासयकड निबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा, आघविजंति, पण्णविनंति परुविजंति, दंसिजंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिजंति । से एवं आया, एवं णाया, कहाओ ) ज्ञाताधर्मकथा ६, ( उवासगदसाओ) उपासकदशाङ्ग ७, (अंतगडदसाओ) अंतकृतदशांग ८, (अणुत्तरोववाइयदसाओ) अनुत्तरोपपातिकदशांग ९, ( पहावागरणं) प्रश्नव्याकरण १० [विवागस्य ] विपाकश्रुत ११ और (farare) दृष्टिवाद १२ ||० १७४॥ , कहाओ ) ज्ञाताधर्म अथा, (७) (उवासगदसाओ) पास हशांग, (८) (अंतगडदसाओ ) तङ्कृत हशांग, ( 6 ) ( अणुत्तरोववाइयदसाओ) अनुत्तरोषघातिषु दशांग (१०) ( पण्हावागरणं) अश्रव्या २५, (११) (विवागसूय) विपासूयश्रुत, ayλ (12) (fafa1g) ¿lka18. 12. 2081 શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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