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________________ भावबोधिनी टीका. त्रिसहस्रतमं समवायनिरूपणम् ६४१ ही देवी बुद्धि देवी निवासभूतौ 'दो दो जोयणसहस्साई' द्वे द्वे योजनसहस्रद्विसहस्र द्विसहस्रयोजनानि 'आयामेणं' आयामेन 'पण्णत्ताः प्रज्ञप्तौ ।।सू १५४॥ त्रिसहस्रतमं समवायमाहमूलम्--इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरकंडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ लोहियक्खकडस्स हेट्रिल्ले चरमंते एसणं तिनि जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥सू. १५५॥ टीका---'इमीसे णं' इत्यादि- इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए' अस्याः खलु रत्नप्रभायाः पृथिव्याः 'वइरकंडस्स' वज्रकाण्डस्य 'उवरिल्लाओ चरमंताओ' उपरितनाचरमान्तात् 'लोहियक्खकडस्स' लोहिताक्षकाण्डस्य 'हेडिल्ले चरमंते' अधस्तनश्वरमान्तो योऽस्ति, 'एसणं' एप खलु 'तिनि जोयणसहरसाइ' त्रीणि योजनसहस्राणि-त्रिसहस्रयोजनानि 'अबाहाए' अबाधया 'अंतरे' अन्तरे-दूरे 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः। अयमत्र भाव-रत्नमभापृथिव्याः प्रथमं खरकाण्डं षोडश. काण्डविभक्तमस्ति । तस्य प्रथम काण्डं रत्नकाण्डम्, द्वितीयं वज्रकाण्डम् , तृतीय इसमें ही नामकी देवी रहती है। तथा महापुण्डरीक नामका जो हूद है वह रूक्मि वर्षधर पर्वत के उपर स्थित है और इसमें बुद्धी देवी का निवास है ॥सू. १५४॥ ___ अब सूत्रकार तीन हजार ३००० वें समवाय का कथन करते हैंइमीसेणं' इत्यादि। इस रत्नप्रभा पृथिवी के वज्रकांड के उपर के अन्तिम भाग से लोहिताक्षकांड का जो नीचे का अन्तिम भाग है वह व्यवधान-अन्तर की अपेक्षा तीन हजार योजन दूर है। इसका भाव इस प्रकार से हैयह तो पहिले कई जगह स्पष्ट किया जा चुका है कि रत्नप्रभा पृथिवी का प्रथम खरकांड सोलह कांडों में विभक्त है। पहिले कांडका नाम खरकांड, द्वितीय का नाम वज्रकांड, तृतीय का नाम वैडूर्यकांड, ની ઉપર આવેલું છે. તેમાં “ધી” નામની દેવી રહે છે. મહાપુંડરીક નામનું હદ સક્કિમ વર્ષધર પર્વતની ઉપર આવેલું છે, અને તેમાં “બુદ્ધિ દેવીને નિવાસ છે. સૂ.૧૫૪ हवे सूत्रा२ SOR (3०००)नां समवाय मतावे छे. 'इमीसेणं' इत्यादि। ટીકાથે--આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના વાકાંડના ઉપરના અન્તિમ ભાગથી લેહિતાક્ષકાંડને નીચેને અન્તિમ ભાગ ત્રણ હજાર યોજન દૂર છે. તેનું સ્પષ્ટીકરણ આ પ્રમાણે છે- એ વાત તે આગળ અનેક જગ્યાએ કહેવાઈ ગઈ છે કે રત્નપ્રભા પ્રશ્વિીનો ખરકાંડ નામને પહેલ કાંડ સોળ ૧૬ ભાગોમાં વહેંચાયેલો છે. પહેલાં શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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