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________________ ६३२ समवायाङ्गसत्रे वि । विमलवाहणे णं कुलगरेणं नवधणुसयाइं उडूं उच्चत्तेणं होत्था। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नवहिं जोयणसएहि सव्वुवरिमे तारारूवं चारं चरइ । निसढस्सणं वासहरपव्वयस्स उवरिलाओ सिहरतलाओ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं नवजोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । एवं नीलवंतस्स वि ॥ सू. १५१ ॥ टीका-'आणय पाणय आरण अच्चुएसु' इत्यादि । 'आणयपाणय आरण आच्चुएसु कप्पेसु' आनतमाणतारणाच्युतेषु कल्पेषु 'विमाणा' विमानानि 'नव नव जोयणसयाई' नव नव योजनशतानि-नवशतनवशतयोजनानि 'उडु उच्चत्तेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्तानि । 'निसहकूडस्स गं' निषधकूटस्य खलु 'उव. रिल्लाओ सिहरतलाओ' उपरितनात् शिखरतलात् 'णिसढस्स वासहरपव्वयस्स' निषधस्य वर्षधरपर्वतस्य 'समेधरणितले' समं धरणितलं यदस्ति, 'एस गं' एतत्खलु 'नवजोयणसयाई' नवयोजनशतानि-निषधकूटं पश्चशतयोजनोच्छ्रितं ___ अब सूत्रकार नौ सौ ९०० वें समवाय का कथन करते हैं'आणयपाणय' इत्यादि । टीकार्थ-आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन कल्पों में नौ सौ नौ सौ ९००-९०० योजन के ऊँचे विमान हैं। निषधकूटके उपर के शिखरतल से निषध वर्पधर पर्वत का सम जो धरणितल है वह नौ सौ योजन दूर है। वह इस प्रकार से है-निषध पर्वत की ऊँचाई चारसौ ४०० योजन की है और इसके कूट की ऊंचाई पांचसौ ५०० योजन की है। इस तरह सूत्रोक्त नौसौ ९०० योजन की दूरी उसके उपरी कूट से उसके सम धरणितल की पडजाती है। इसी वे सूत्र नपसे (८००) ना समपाये! मतावे छे-- 'आणय पाणय' इत्यादि। साथ-मानत, प्रात, मा२९॥ मने मयुत, मे ४८पामा नवसे। नपसे (00૯૦૦) યોજન ઊંચાં વિમાન છે. નિષધકૂટના ઉપરના શિખરતળથી નિષધ વર્ષધર પર્વતને જે સમધરણિતલ ભાગ છે તે ૯૦૦ યોજન દૂર છે. તે આ રીતે છે– નિષધ પર્વત ૪૦૦ એજન ઉંચે છે અને તેના કુટની ઉંચાઈ ૫૦૦ એજનની છે. આ રીતે તેના ઉપરના ફૂટથી તેના સમરણિતલનું સૂકત ૯૦૦ જનનું શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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