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________________ भाववोधिनी टीका. अष्टषष्ठितम समवायनिरूपणम् ४९३ पेक्षया द्विगुणितानि षट्पञ्चाशत्सख्यकानि भवान्त । एषां सर्वेषां यदहारात्रो. पभोग्यक्षेत्रमस्ति, तस्य सप्तषष्टयाभागे कृते त्रीणि सहस्राणि पष्टयधिकषट्शतानि च सप्तपष्टिभागा (३६ ६०/६७) लभ्यन्ते । षट्पञ्चाशतो नक्षत्राणामेतावान् क्षेत्रसीमाविष्कम्भो विज्ञेयः ॥सू.१०६।।। अष्टषष्टितमं समवायमाह-'धायइसंडेणं' इत्यादि। मूलम्-धायइसंडे णं दीवे अडसट्री चक्कट्टि विजया अडसट्री रायहाणीओ पण्णत्ताओ। उक्कोसपए अडसटी अरहंता समुप्पजिंसु वा समुप्पाजंति वा समुप्पजिस्संति वा । एवं चकवट्टी बलदेवा सरसठ भाग करने पर १८३०/६७ आते हैं। यही इनकी क्षेत्रसीमा का विष्कंभ है। जंबूद्वीप में दो चंद्रमा और दो सूर्य की अपेक्षा ये २८ अठाइस नक्षत्र दूने अर्थात् ५६ छप्पन हैं। इन सबका जो अहोरात्र भोग्यक्षेत्र है उसके ६७ सरसठ भाग करने पर छत्तीसौ साठ और एक अहोरात्र का सरसठ ऊन ६६६० ०/६७ आते हैं। सो इतना इन ५६ छप्पन नक्षत्रो की क्षेत्रसीमा का विष्कंभ है ऐसा जानना चाहिये। भावार्थ-पांच संवत्सरों द्वारा निष्पन्न हुए १ युग में ६७ सरसठ नक्षत्रमास होते हैं। हैमवत और एरेवतक्षेत्र के दोनों बाहु भिन्न२ रूप से ६७५५ ३/१९ सरसठसौ पचपन योजन और एक योजन के उगनिसीया तीन भाग आयाम लंबापनकी अपेक्षा से हैं। सुमेरु पर्वत के पौरस्य चरमांत (पूर्व के अन्तिम भाग) से गौतमद्वीप का पौरस्य चरमांत पूर्व के अन्तिमभाग) व्यवधान की अपेक्षा ६७ सरसठ हजार योजन दूर है। समस्त नक्षत्रों का सीमाविष्कंभ ६६ सरसठ भाग से भाजित है ॥१०१०६॥ ભાગ કરતા ૧૮૩૦ /૬૭ આવે છે. એ જ તેની ક્ષેત્ર સીમાનો વિષ્ઠભ છે. જબુદ્વીપમાં બે ચન્દ્રમા અને બે સૂર્યની અપેક્ષાએ નક્ષત્રો બમણુ-એટલે કે ૨૮-૨ = ૨૬ નક્ષત્રો છે. તે સૌનું જે અહેરાત્ર ભેગ્ય ક્ષેત્ર છે, તેના ૬૭ સડસઠ ભાગ પાડતા ३१६० ०/६७ आवछ. तो त ५(यन)नक्षत्रानी क्षेत्रसीमाना Qिort मेटस। or-38६. सभावान छ ભાવાર્થ-પાંચ સંવત્સરો દ્વારા નિર્વાણ થતાં એક યુગમાં સડસઠ (૬૭) નક્ષમાસ હોય છે. હિમવત અને રવત ક્ષેત્ર બને બાહુ આયામની અપેક્ષાએ ભિન્ન ભિન્નરૂપે ૬૭૫૫ ૩/૧૯ યોજન છે. સુમેરુ પર્વતના પૌરયે ચરમાન્ત (પૂર્વના અન્તિમ ભાગ)થી ગૌતમીપને અતિમ ભાગ સડસઠ હજાર (૬૭૦૦) જનને અંતરે છે. સઘળાં નક્ષત્રને સીમાવિષ્ઠભ ૬૭ સડસઠ ભાગ વડે ભાજિત છે. સૂ. ૧૦૬ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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