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________________ समवायाङ्गसूत्रे च-पायश्चित्तसमाचरणम्३१, 'आराहणा य मरणंते' आराधना च मरणान्तेमरणसमये आराधनाकरणम्, समाधिमरणेन मर्त्तव्यमित्यर्थः३२ । इत्येते 'वनीसं' द्वात्रिंशद 'जोगसंगहा' योगसंग्रहाः विज्ञेयाः।।५।। 'बत्तीसं' द्वात्रिंशद 'देविंदा' देवेन्द्राः देवानामिन्द्राः-देवाधिपतयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-ते यथा-चमरः१, बलिः२, धरणः३, भूतानन्दः४, 'जाच' यावत= यावच्छन्देन-वेणुदेवः५, वेणुदाली६, हरिकान्तः७, हरिस्सहः८, अग्निशिखः९. अग्निमाणव:१०, पूर्ण:११, वसिष्ठः१२, जलकान्तः१३, जलप्रभः१४, अमितगतिः१५, अमितवाहनः१६, वेलम्बः१७, प्रभञ्जनः१८, इत्यादीनां ग्रहणम् , घोषः१९, महाघोषः२०-एते विंशतिसंख्यका भवनपति देवानामिन्द्राः सन्ति २०॥ चन्द्रः२१, सूर्यः, एतौ ज्योतिष्काणामिन्द्रौ । शक्र:२३, ईशानः२४, सनत्कुमारः२५, 'जाव' यावत्-यावत्करणात्-माहेन्द्रः२६, ब्रह्मा२७, लान्तकः२८. शुक्रः२९, सहस्रारः३०, इत्यादीना ग्रहणम् पाणतः३१, अच्युतः३२, एते दशवैमानिकदेवानामिन्द्राः । अत्र पिशाचभूतादीनां षोडश,-अमज्ञिक-पश्चशिका धिमरण से प्राणों का विसर्जन करना मारणान्तिक आराधना है ३२॥ ये बत्तीस योगसंग्रह हैं। बत्तीस देवेन्द्र कहे गये हैं। वे इस प्रकार से हैं-चमर१, बलि२, धरण३, भूतानंद४, वेणुदेव५, वेणुदाली, हरिकांत७, हरिस्सह८, अग्निशिख९, अग्निमाणवक१०, पूर्ण११, वशिष्ठ १२. जलकान्त१३, जलप्रभ१४, अमितगति१५, अमितवाहन१६, वेलम्ब१७, प्रभंजन१८, घोष१९ महाघोष२०, ये बीस भवनपति देवों के इन्द्र हैं। चन्द्र सूर्य ये दो ज्योतिष्क देवों के इन्द्र हैं। शक्र१, ईशान२, सनत्कुमार३, माहेन्द्र४, ब्रह्मा५, लान्तक६, शुक्र७, सहस्रार८, प्राणत९, अच्यत१०. ये दश वैमानिक देवों के इन्द्र हैं । पिशाचभूत आदिकों के१६सोलह इन्द्र (૩૨)સમાધિમરણથી પ્રાણેનું વિસર્જન કરવું તેનું નામ મારણાન્તિક અરિાધના છે. આ પ્રમાણે ૩૨ ચોગ સંગ્રહ છે. નીચે પ્રમાણે ૩ર બત્રીસ દેવેન્દ્રો કહેલ છે. (૧) ચમર, (२) मसि, (३) घर, (४) सूतानंद, (५) बेशुहेव, (६) वहादी, (७) रिशान्त, (८) रिसाह, () शिशिम, (१०) मसिमा , (११) पूल, (१३) पशिs, (13) rest-d, (१४) सम, (१५) अमिताति, (१६) मभितवाडन, (१७) वेत, (१८) प्रलन, (16) घोष, (२०) महाघोष, से वीस भवनपति वाना छन्द्रो छ. यन्द्र भने सूर्य रे में ज्योति०४ हेना-द्रो. (1) श४, (२) शान, (3) सनभा२, (४) भाडेन्द्र, (५) ब्रह्मा, (९) सान्त, (७) शुर, (८) सहसा२, (e) प्रात, (१०) १२युत, मेश वैमानि हेवान। छन्द्रो छ. पिशायभूत माहि શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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