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________________ ३५८ समवायाङ्गसूत्रे दिगुणाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - ' खीणे आभिणिबोहियणाणावरणे' क्षीणम् - आभि निबोधिकज्ञानावरणम् =मतिज्ञानावरणस्य - क्षय इत्यर्थः १, क्षीणं श्रुतज्ञानावरणम२, क्षीणमवधिज्ञानावरणम् ३, क्षीणं मनः पर्यवज्ञानावरणम् ४, क्षीणं केवलज्ञानावर ५, क्षीणं चक्षुर्दर्शनावरणम् ६, क्षीणमचक्षुदर्शनावरणम् ७, क्षीणमवधिदर्शनावरणम्, क्षीणं केवलदर्शनावरणम् ९, क्षीणा निद्रा१०, क्षीणा निद्रानिद्रा ११, क्षीणा प्रचला १२, क्षीणा प्रचलाप्रचला १३, क्षीणा स्त्यानर्द्धिः १४, क्षीणं सातावेदनीयम् १५, क्षीणमसातावेदनीयम् १६, क्षीणं दर्शनमोहनीयम् १७, क्षीणं चारिमोहनीयम् १८, क्षीणं नरकायुः १९, क्षीणं तिर्यगायुः २०, क्षीणं मनुष्यायुः २१, क्षीणं देवायुः २२, क्षीणमुच्चगोत्रम् २३, क्षीणं नीचगोत्रम् २४, क्षीणं शुभनाम२५, क्षीणमशुभनाम२६, क्षीणो दानान्तराय: २७, क्षीणो लाभान्तरायः २८, क्षीणो ३१ इकतीस कहे गये हैं। वे इस प्रकार से हैं- मतिज्ञानावरणकर्म का क्षय १, श्रुतज्ञानावरणकर्म का क्षय२, अवधिज्ञानावरणकर्म का क्षय३, मनः पर्यवज्ञानावरणकर्म का क्षय ४, केवलज्ञानावरणकर्म का क्षय५, चक्षुदर्शनावरणकर्म का क्षय६. अचक्षुदर्शनावरण कर्म का क्षय७, अवधिदर्शनावरण कर्म का क्षय८, केवलदर्शनावरण कर्म का क्षय ९, निद्रादर्शनावरणीकर्म का क्षय १०, निद्रानिद्रादर्शनावरणीकर्म का क्षय, ११, प्रचलादर्शनावरणीकर्म का क्षय १२, प्रचलाप्रचला दर्शनावरणीकर्म का क्षय १३, त्यानर्द्धिकर्म का क्षय १४, सातावेदनीयकर्म का क्षय १५, असातावेदनीयकर्म का क्षय १६, दर्शन मोहनीयकर्म का क्षय १७, चारित्रमोहनीयकर्म का क्षय १८, नरकायु का क्षय १९. तिर्यचायु का क्षय २०, मनुष्यायुका क्षय२१, देवायु का क्षय२२, उच्चगोत्र का क्षय २३, नीच गोत्र का क्षय२४ शुभनाम का क्षय२५, अशुभनाम का क्षय २६, दानान्तराय का क्षय२७, लाभान्तજે ૩૧ એકત્રીસ ગુણ્ણા વિદ્યમાન હોય છે ત આ પ્રમાણે છે-(૧)મતિજ્ઞાનાવરણુક*ने। क्षय (-) श्रुतज्ञानाव२ना क्षय (3) अवधिज्ञानावराना क्षय (४) मनःपर्य वज्ञानावरन क्षय, (५) वणज्ञानावराना क्षय, (६) यक्षुर्शनावरण ना क्षय (७) અચક્ષુ નાવરણકમ ને ક્ષય,(૮)અવધિદર્શનાવરણક`ના ક્ષય,(૯) કેવળદર્શનાવરણકभ'नाक्षय, (१०)निद्रादृर्शनावरणीय मनो क्षय, (११) निद्रानिद्राहर्शन वराशी मनो क्षय, (१२) પ્રચલાદશ ન વરણીકમ ના ક્ષય (૧૩)પ્રચલાપ્રચલાદનાવરણીકમ ના ક્ષય,(૧૪)રત્ય ત્યદ્ધિ कुर्भनाक्षय.(१५)सतावेदनीयम् । क्षय, [१९] असातावेदनीयम्र्मना क्षय, (१७) ६र्शनमोहनीयमाना क्षय (१८) यान्त्रिमोहनीयम्र्मना क्षय, (१७) तरायुभने क्षय, (२०) तियચાયુકમ ના ક્ષય,(૨૧ મનુષ્પાયુક ના ક્ષય,(૨૨)દેવાયુકમ ના ક્ષય (૨૩)ઉચ્ચગેાત્રના ક્ષય, (२४) नीयगोत्रो क्षय, [२५] शुलनामा क्षय, [२६] अशुभनामनो क्षय, (२७) हानान्तरायना क्षय (२८) सालान्तरायनो क्षय, (२८) लोगान्तरायने। क्षय, (३०) શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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