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________________ भावबोधिनी टीका. द्वाविंशतिसमवाये द्वाविंशतिपरीषहादीनां निरूपणम् २६५ सिजी परीसहे, अक्को संपॅरीसहे, वहपैंरीसहे, जायणापरीसहे, अलाभरी सहे, रोग परीसहे, तणफासपरी सँहे, जलैपरीसहे, सक्कारपुरकीर परीसहे, पण्णापरीसेंहे, अण्णाणपरीस हे दंसणपरीसहे, दिट्टिवायरस णं बावीस सुत्ताइं अछिन्नछेयणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडाए । बावीसं सुत्ताइं अच्छिन्नछेयणइयाई आजीवियसुत्तपरिवाडीए । बावीस सुत्ताई तिकणइयाई तेरासिअसुत्तपरिवाडीए। बावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाई ससमयसुत्तपरिवाडीए । बाबीसविहे पोग्गल प रिणामे पन्नत्ते, तं जहा - कालवण्णपरिणामे, नीलवण्णपरिणामे, लोहि परिणामे, हालिर्वेष्णपरिणामे, सुकिल्लवेपणपरिणामे, सुब्भिगंधपरिणामे, दुब्भिगंधपरिणामे, तित्तरसपरिणामे, कडुयरंसपरिणामे, कसायरक्कपरिणामे, अंबिलरसंपरिणामे, महुररसैपरिणामे, कक्खडफासैपरिणामे, मउयफार्सेपरिणामे, गुरुफार्सेपरिणामे, लहुफा सैपरीणामे, सीयफस परिणामे, उसिणफासपरिणामे, णिद्धफा संपरिणामे, लुक्खफासपरिणामे, अगुरुलहुफासपरिणामे, गुरुलहुफा सैपरिणामे ॥ सू०५० ॥ टीका - ' बाबीसं परीसहा' इत्यादि । द्वाविंशतिः परीषहाः - परि= समन्तात् कर्मनिर्जरार्थं स्वहेतुभिरुदीर्यमुमुक्षुभिः सचन्त इति परीषहाः प्रज्ञप्ता, (१) 'दिगिंछा अब सूत्रकार २२ बाईस संख्याविशिष्ट समवाय को प्रगट करते हैं'बावीस परीसहा पण्णत्ता' इत्यादि । टीकार्थ- बाईस परीषह कहे गये हैं, वे इस प्रकार से हैं - दिगिछापरी ह १, पिपासा परीषद २, शीतपरीषद ३, उष्णपरीषह ४, दंशमशकपरीषह ५, अचेलपरीषह ६, अरतिपरीषह ७, स्त्रीपरीषह ८, चर्यापरीषह ९, निषद्या वे सूत्रा २२वीस संध्यावाणा समवायो मतावे छे– 'बावीस परीसहा पण्णत्ता इत्यादि ! टीडार्थ - जावीस परीषद्ध उद्या छे, ते या प्रमाणे छे – (१) हिगि छापरीषड, (२) पिपासा परीषड, (3) शीतयरीषड, (४) उपय परीषद्ध (4) शमशः परीषहु, (६) अयेस परीषडु, (७) भरति परीषडु, (८) स्त्री परीगड, (ङ) थर्यापरीषडु, (१०) निषधा परीषद्ध, (११) शय्या परोषड (१२) भाजेश परीषद्ध. શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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