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समवायाङ्गसूत्रे पार्श्वस्थादयश्थ, ते पारभाषिताः प्ररूपिता यस्मिन्नध्ययने तदध्ययनम् । 'बीरिए' वीर्यम्, विशेषेण ईरयति प्ररेयति आत्मनं तासु तासु क्रियासु यत्तद् वीर्यम्, तन्नामकमध्ययनम् । 'धम्मे' धर्मः, "दुर्गति पसृतान् जन्तून् यस्माद् धारयते पुनः । धत्ते चैव शुभस्थाने तस्माद् धर्म इति स्मृतः इत्युक्तलक्षणं कुशलानुष्ठानम् तत्प्रतिपादकमध्ययनं धर्मनामाध्ययनम् । 'समाहि' समाधानं समाधिः = ज्ञानदर्शनचारित्रात्मकं चित्तस्वास्थ्यं तत्प्रतिपादकमध्ययनं समाधिरिति । 'मग्गे' मृज्यते शोध्यते कर्ममलिन आत्माऽनेनेति मार्गः । प्रवर्तकत्वेन प्रमाणत्वेन च सकलजनैरादृतं भगवदुदितं वचनम्, बहुश्रुताशठसाधुनामाचरणं चेत्युभयस्वरूपः तत्प्रति
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पार्श्वस्थ आदि साधुओं का प्रतिपादन किया गया है इस कारण इसका नाम 'कुशीलपरिभाषित' रखा गया है । ८ 'वीर्य' इस अध्ययन में उन २ क्रियाओ में आत्मा को विशेष रूप में संलग्न करने के लिये प्रेरित किया गया है, इस निमित्त से इस अध्ययन का नाम 'वीर्य' रखा गया है। ९'धर्म' इस अध्ययन में धर्म के प्रभाव का वर्णन किया गया है। जो जीवों की दुर्गति में जाने से रक्षा करे और शुभ स्थान में पहुँचावे उसका नाम धर्म हैं । इस कुशलानुष्ठानरूप धर्म का प्रतिपादन करने वाला होने से इस अध्ययन का नाम भी 'धर्म' हुआ है । १० 'समाधि' ज्ञान, दर्शन और चारित्र इन स्वरूप चित्त की स्वस्थता का नाम समाधि है । इस समाधि का प्रतिपादक अध्ययन 'समाधि से व्यवहृत हुआ है । ११ 'मार्ग' इस अध्ययन में यह प्रतिपादित किया गया है कि 'कर्मों से मलिन बनी हुई यह आत्मा किस प्रकार से शुद्ध हो सकती है इस स्थ आहि साधुग्यो प्रतिपादन उरायु छे, तेथी तेनु' नाम 'कुशीलपरिभाषित' राभ्यु' छे. (८) 'वीर्य' आ अध्ययनमां ते ते प्रियायामां आत्माने विशेषज्ञये प्रवृत्त पुराने माटे प्रेरित उरवामां आवे छे ते अरोमा अध्ययननु' नाम 'वीर्य' चडयु छे, (६) 'धर्म' मा अध्ययनभां धर्मना प्रभावनुं वार्जुन श्वासां मायु છે. જીવાનુ દુગતિમાં જવાથી જે રક્ષણ કરે અને શુભસ્થાનમાં પહાંચાડે તેનુ નામ ધર્મ છે આ કુશલ અનુષ્ઠાન રૂપ ધર્મનું પ્રતિપાદન કરાવનાર હોવાથી આ मध्ययनतु नाम 'धर्म' छे. (10) 'समाधि' ज्ञान, दर्शन, अने यारित्र मे स्वइय वित्तनी स्वस्थतानु नाम 'समाधि' छे ते समाधिनु प्रतिपादन १२नार अध्ययननु' नाम 'समाधि' (यु छे, (११) 'मार्ग' या अध्ययनभां ये बात अताववामां भावी છે કે કમૅમ્પ મલિન બનેલ આત્મા કયા પ્રકારે શુદ્ધ થઈ શકે છે. આ પ્રકારના માનુ
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર