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________________ भावबोधिनी टीका. भविष्यत्व क्रवर्त्तिनाम निरूपणम् ११३३ बारसपियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति ॥ सू० २१५ ॥ शब्दार्थ - (जंबूद्दी वे णं दीवे) जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे - जम्बूद्वीप नामके द्वीप में (भार वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए ) भारते वर्षे आगमिष्यन्त्या मुत्सर्पिण्यां - भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणीकाल में (बारस चक्कवट्टिणी भविस्संति) द्वादश चक्रवर्तिनो भविष्यन्ति--बारह चक्रवर्ती होंगे। (तं जहा ) तद्यथा उनके नाम इस प्रकार से हैं (भरहे य दीहदंते गूढदंते य सुद्धदंतेय सिरिउत्ते सिरिभूई सिरिसोमे य सत्तमे) भरतश्च दीर्घदन्तो गूढदन्तश्च शुद्धदन्तव, श्रीपुत्रः श्रीभूतिः श्रीसोमश्च सप्तमः - भरत दीर्घदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त, श्रीपुत्र, श्रीभूति, सप्तम श्रीसोम, ( पउमेय महापउमे विमलवाहणे विपुल वाहणे चेव, वरिठ्ठे बारसमे बुते आगमिस्साभरहाहि वा) पद्मश्च महापद्मो विमलवाहनो विपुलवाहनश्च वरिष्ठो द्वादशउत्त: आगमिष्यन्तो भरताधिपाः- पद्म महापद्म विमलवाहन विपुलवाहन और बारहवें वरिष्ठ | ये आगामी काल में भरतक्षेत्र के अधिपति होंगे। (एएसि बारसहं चक्कवट्टीणं बारसपियरो भविस्संति) एतेषां द्वादशानां चक्रवर्तिनां द्वादश पितरो भविष्यन्ति इन बारह चक्रवर्तियों के बारह पिता होंगे बारस - शहा (जंबुद्दीवेणं दीवे) जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे - शूद्वीप नामना द्वीप (भार हे वासे) भारत वर्ष - भरत क्षेत्रमा ( आगमिस्साए उस्सप्पिणीए ) आगमिष्यन्त्यामुत्सर्पिण्या आगामी उत्सर्पिली मां (बारसचक्कवहिणी भविस्संति) द्वादश चक्रवर्तिनो भविष्यन्ति- -मार यवर्तियो थशे. (तंजहा ) तंद्यथा-तेमनां नाम या प्रमाणे शे. (भरहे य दीहदंते गूढदंते य सुद्धदंते य सिरिउत्ते सिरिभूई सिरिसोमे य रुत्तमे ) भरतश्च दीर्घदन्तो गूढदन्तश्च शुद्धदन्तश्च श्रीपुत्र श्रीभूति श्री सोमथ सप्तमः - ( 1 ) भरत, (२) हीर्वहन्त, (3) गूढह ंत्त, (४) शुद्धद्धांत (4) श्रीपुत्र, (६) श्रीभूति, (७) श्री सोम, (पउमे महापउमे विमलवाहणे विपुलवाहणेचेव वरिठ्ठे बारसमे बुत्ते आगमिस्सा भरहाहवा) पद्मश्च महापद्मो विमलवाहनो विपुलवाहनश्चैव वरिष्ठो द्वादश उक्तः आगमिष्यन्तो भरताधिपाः (८) पद्म, (८) महापद्म (१०) विभसवाहन, (११) वियुस વાહન, અને (૧૨] રિષ્ઠ, તે આગામી કાળમાં ભરતક્ષેત્રનાં અધિપતિ થશે (एएसि णं बारसहं चक्कवहीणं बारस पियरो भविस्संति) एतेषां द्वादशानां चक्रवर्तिनाम् द्वादशपितरो भविष्यन्ति ते मार यवर्तियोना . २ पीता थशे, શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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