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________________ भावबोधिनी टीका. नव निदानभूमिनामनिरूपणम् १११५ रामा केसवा सव्वे अहोगामी ॥ ६५॥ अट्टतकडा राम एगो पुणबभलोय कप्पमि । एक्का से गभवसही सिज्झिस्सइ आगमिस्से ।। ६६ ।। सू.२१०॥ अब हम इन वासुदेवों की इन निदानभूमियों को कहते हैं कि जहां पर इन्होंने निदान किया था शब्दार्थ (एएसिं नवहं वासुदेवाणं) एतेषां नवानां वासुदेवानां - इन नौ वासुदेवों की ( नव नियाणभूमीओ होत्था ) नव निदानभूमय आसननौ निदानभूमियां थीं (तं जहा) तद्यथा - वे इस प्रकार से हैं (महुरा य कणगवत्थू सावत्थीपोयणं च रायागेहं कायंदी कोसंबी, मिहिलपुरी हल्थिणपुरं च) मधुरा कनकवास्तुश्च श्रावस्ती पोतनं च राजगृहम्, काकनन्दी कौशाम्बी मिथिलापुरी हस्तिनापुरं च मधुरा, कनकवास्तु, श्रावस्ती, पौतन, राजगृह, काकन्दी, कौशाम्बी, मिथिलापुरी और हस्तिनापुर । (एएसि णं णवण्हं वासुदेवाणं णव नियाणकारणा होत्था) एतेषां खलु नवानां वासुदेवानां नव निदानकारणान्यभूवन् - इन नौ वासुदेवों के जो नौ निदान कारण हुए हैं (तं जहा ) तद्यथा - वे इस प्रकार से हैं (गावी जुवे संगामे तह इत्थीपराइओ रंगे, भजाणुरागपरइड्ढी माउयाइय) गौर्युपः संग्रामः स्त्री पराजितं रङ्गः, भार्यानुरागो गोष्ठीपर ऋद्धिर्मातेति - गाय, यूप, संग्राम, स्त्रियों से पराजय, रङ्ग, भार्यानुराग, गोष्ठी, परऋद्धि और माता । AVON હવે સૂત્રકાર તે વાસુદેવાની તે નિદાનભૂમિયા વિષે કહે છે કે જ્યાં તેમને નિર્દે ન કર્યું હતું - शब्दार्थ - (एएसि नवहं वासुदेवाणं) एतेषां नवानां वासुदेवानांते नव वासुदेवोनी ( नवनियाणभूमिओ होत्था ) नव निदानभूमय आसन् - नव निधानलुभियो हती, (तं जहा ) तद्यथा - तेमनां नाम या प्रमाणे छे - ( महुरा य कणगवत्थू सावत्थीपोयणं च रायगिहं, कार्यदीकोसंबी, मिहिलपुरी हत्थिणपुरं च ) मथुराकनववास्तुश्च श्रावस्तीपोतनं च राजगृहम् काकन्दी कौशाम्बीमिथिलापुरी हस्तिनापुरं च- मथुरा, उनश्वास्तु, श्रावस्ती, पोतन, रामगृह, अन्ही, शाम्जी, मिथिलापुरी भने हस्तिनापुर: (एएसि णं णवहं वासुदेवाणं णव नियाणकारणा होत्या) एतेषां खलु नवानां वासुदेवानां नव निदानकारणान्यभूवन् - ते नव वासुदेवानां ने नव निहान अरणे । उता (तं जहा ) तद्यथा-ते याप्रमाणे छे - ( गावीजुवे संगामे तह इत्थीपराइओ रंगे, भज्जारागपरइड्डीमा उयाइघ) गौर्युपः संग्रामः स्त्रीपराजितं रङ्गः, भार्यानुरागो गोष्ठीपरऋद्विर्नातेति - गाय, यूथ (जीसी), संग्राम, स्त्रीओ द्वारा परान्त्य, શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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