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________________ १०९२ समवायाङ्गसूत्रे ४, शिव ५, महासिंह ६, अग्निशिख ७, दशरथ ८ और नवमां - वसुदेव ९। (जबुद्दीवे णं दीवे) जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे इस जम्बूद्वीप में (भार हे वासे) भारते वर्षे - भारतवर्ष में ( इमी से ओसप्पिणीए ) इस अवसर्पिणी काल में ( नववासुदेव मायरो होत्था ) नव वासुदेवमातरोऽभूवन नौ वासुदेव की माताएँ हुई हैं। तंजहा) तद्यथा उनके नाम ये हैं- (मियावई उमाचेव पुढवी सीया य अम्मया, लच्छिमई सेसमइ केकेइ देवई तहा)मृगावती उमाचैव पृथिवी सीता च अम्बिका लक्ष्मीवती शेषमती कैकेयी देवकी तथा मृगवती १, उमा २. पृथिवी ३ सीता ४ अम्बिका ५, लक्ष्मीवती ६ शेषमती कैकेयी और नववीं देवकी९ । ( जंबुद्दीवे णं दी वे भार हे वासे इमी से ओपिणी णव बलदेवमायरो होत्था ) जम्बूद्वीपे खलु दीपे भारते वर्षेऽस्यामवसर्पिण्यां नव बलदेव मातरो बभूवुः - इस जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में भारत वर्ष में अवसर्पिणीकाल में नौ बलदेव की माताएँ हुई हैं । (तंजहा) तद्यथा उनके नाम इस प्रकार हैं - ( भद्दा तह सुभद्दा य सुप्पभाय सुदंसणा विजया वेजयंती य जयंती अपराजिया ) भद्रा तथा सुभद्रा च सुप्रभा च सुदर्शना, विजया वैजयन्ती च जयन्ती अपराजिताभद्रा १, सुभद्रा २, सुप्रभा ३, सुदर्शना ४, विजया ५, वैजयंती ६, जयंती (3) रुद्र, (४) सोम, (च) शिव, (६) महासिंह, (७) अग्निशिय, (८) दशरथ, मने (E) वसुदेव. (जंबुद्दीवेणं दीवे) जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे - मूद्वीपमा (भार हे वासे) भारते वर्षे - भारतवर्ष नामना क्षेत्रमा (इमीसे ओसप्पिणीए) या अवसर्पिणमा (णव वासुदेवमायरो होत्या) नव वासुदेवमातरोऽभूवन्नव वासुद्वेवोनी नव भाताओ यह गध छे. (तं जहा ) तेमनां नाम या प्रमाणे उdi (मियावई उमाचेव पुढवीसीया य अम्मयालच्छिमई से समई के के ईदेवई तहा) मृगावती उमाचैव पृथिवी सीता च अम्बिकालक्ष्मीवती शेषमती कैकेयी देवकी तथा - ( १ ) भृगावती, (२) उभा, (3) पृथिवी, (४) सीता, (4) अम्बिका (६) लक्ष्मीवली (9) शेषमती, (८) है हैयी भने (९) हेवडी (जंबुद्दीवे णं दीवे) जम्बूद्वीपेण खलु द्वीपे भूद्वीपमा (भारहे वासे इमीसे ओसपिणीए बलदेवमायरो होत्या) भारतेवर्षेऽस्यामवसर्पिण्यां नवबलदेवमातरो बभूवुः - ભારતવર્ષમાં આ અવસર્પિણી કાળમાં નવ બળદેવાની જે નવ માતાએ થઈ ગઇ ( तं जहा ) तद्यथा - तेमनां नाम या प्रमाणे छे - ( भद्दा तह सुभद्दा य सुप्पभा य सुदंसणा विजया वेजयंती य जयंती अपराजिया ) - भद्रा तथा सुभद्रा च सुप्रभा च सुदर्शना, विजया वैजयन्ती च जयन्ती अपराजिता - (१) लगा, (२) सुभद्रा, (3) सुअला, (४) सुदर्शना, (५) विक्या, (६) वैक्यन्ती, (७) भयं ती, -r શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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