SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1099
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८० समवायाङ्गसूत्रे दधिपर्णः । नन्दीशस्तिलक आम्रवृक्षोऽशोकश्च ॥३५॥ चंपको बकुलश्च तथा वेतसवृक्षो धातकीरक्षश्च । सालश्च वर्द्धमानस्य चैत्यवृक्षा जिनवराणाम् ॥३६।। द्वात्रिंशद् धनूंषि चैत्यवृक्षश्च वर्द्धमानस्य । नित्यर्तुकोऽशोकोऽवच्छिन्नः सालक्षैः ॥३७॥ त्रीण्येव गव्यूतानि चैत्यवृक्षो जिनस्य ऋषमस्य । शेषाणं पुनर्वृक्षाः शरीरतो द्वादशगुणास्तु ॥३८॥ सच्छत्राः सपताकाः सवेदिकास्तोरणैरुपपेताः । मुरासुरगरुडमहिताश्वैत्यक्षा जिनवराणाम् ॥३९॥ सू.२००॥ मूलम्-एएसिं चउवीसाएरातित्थगराणं चउव्वीसं पढमसीसा होत्था, तं जहा-पढमेत्थ उसभसेणे बीइए पुण होइ सीहसेणे य । चारू य वजणाभे चमरे तह सुव्वय विदब्भे ॥४०॥ दिण्णे य वराहे तिन्दुल ११ पाटल १२, जम्बू १३, अश्वत्थ १४ दधिपर्ण १५, नंदीवृक्ष १६, तिलक १७, आम्रवृक्ष १८, अशोक १९, चंपक २० बकुल २१, वेतसवृक्ष २२, धातकीटक्ष २३, और वर्द्धमान भगवान् का सालवृक्ष २४। ये जिनवरों के चैत्यक्ष हैं। वर्द्धमान भगवान का चैत्यक्ष ३२ धनुष उचा था। समस्त ऋतुओं से वह युक्त था। शोक-उपद्रव आदि से वह रहित था। तथा सालवृक्षों से वह घिरा हुआ था ऋषभनाथ भगवान का चैत्यक्ष तीन कोश का ऊँचा था। तथा अवशिष्ट तीर्थंकरों के चैत्यक्ष उनकी शरीर की ऊँचाई से बारह गुणी उँचाईवाले थे ये सब चैत्यक्ष छत्र सहित थे, पताका सहित थे, वेदिका सहित थे और तोरण सहित थे। सुर असुर और गरूल-सुपर्णकुमारों से ये सब जिनेन्द्रों के चैत्यक्ष सेवित थे।।सू० २००॥ नामवृक्ष, (6) भाली, (१०) पिस क्षुवृक्ष,(११) तिgs, (१२) पाटन, (१३) भू, (१४) सवय, (१५) धिपण, (१६) नहीवृक्ष, (१७) तिल, (१८) माम्रवृक्ष, (१८) म , (२०) ५४, (२१) मga, (२२) २तसक्ष, (२३) यातीवृक्ष भने (૨૪) વર્ધમાન ભગવાનનું સાલવૃક્ષ. આ પ્રકારે જિનવરોનાં ચિત્યવૃક્ષનાં નામ હતાં. વર્ધમાન ભગવાનનું ચૈત્યવૃક્ષ બત્રીસ ધનુષપ્રમાણ ઊંચું હતું. તે બધી ઋતુઓથી યુકત હતું. તે શોક-ઉપદ્રવ આદિથી રહિત હતું. તથા સાલવૃક્ષોથી ઘેરાયેલું હતું. અષમનાથ ભગવાનનું ચૈત્યવૃક્ષ ત્રણ કોશ ઊંચું હતું. બાકીને તીર્થકરેનાં ચૈત્યવૃક્ષે તેમનાં શરીર કરતાં બાર ગણી ઊંચાઈનાં હતાં. તે બધાં ચૈત્યવૃક્ષો છત્ર, પતાકા, વેદિકા અને તે રણથી યુકત હતાં. તે ચાવીસે જિનેન્દ્રોનાં ચૈત્યવૃક્ષો સુર, અસુર અને ગલસુપર્ણકુમારે દ્વારા સેવિત હતાં. સૂ. ૨૦૦૧ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy